के.पी. सेक्सेना ’दूसरे’ - 2
के.पी. सक्सेना 'दूसरे'जानवर
(1)
जानवर की कोख से
जनते न देखा आदमी
आदमी की नस्ल फिर क्यों
जानवर होने लगी।
(2)
गो पालतू है जानवर
पर आप चौकन्ने रहें
क्या पता किस वक़्त वो
इन्सान बनना ठान ले।
(3)
पड़ोसी मर गया, अब यह खबर अखबार देते हैं
सोच लो किस तज़| में हम ज़िन्दगी का बोझ ढोते हैं,
अब तो मैं भी छोड़ता बिस्तर सुनो तस्दीक़ कर,
नाम मेरा तो नहीं था कल ’निधन’ के पृष्ठ पर।