कोई काश नहीं रहता

01-04-2025

कोई काश नहीं रहता

कमल कुमार (अंक: 274, अप्रैल प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

नहीं 
कोई काश नहीं रहता 
झेंप, उदासी और अवसाद नहीं रहता 
उत्तर-प्रत्युत्तर, वाद-विवाद नहीं रहता 
 
अंतिम क्षणों में 
रहती हैं समक्ष 
नर्म स्मृतियाँ 
नन्हे हाथ, उनके स्पर्श 
पिता के क़दमों की ठप-ठप 
माँ के आँचल का स्पर्श 
 
बहन आती याद 
सहचरी संवाद 
प्रेयसी, प्रेम, आलिंगन 
छूटती साँस का मन बंधन 
 
पहाड़ आते 
नदी, न्यार 
चार-छः मित्र 
गाँव, क्यार 
 
न सोचता मैं 
स्वप्न, न इच्छाएँ, न विलाप 
छूटते प्राण पर 
कौन सोचे पश्चाताप? 

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