किसने लिखी है इबारत
डॉ. वन्दना मिश्र
फ़ासले दिल में बढे़ हैं कम हुईं हैं दूरियाँ
आसपास को भूलते आनलाइन हैं नज़दीकियाँ॥
पत्र अब मिलते नहीं कि पढ़ सकें हम बार बार,
सेन्ड और डिलीट ही तो बन रही हैं मजबूरियाँ॥
देख ज़माना जा रहा आज तो है किस तरफ़,
हर रोज़ तो सुन रहे जहाँ-तहाँ गुस्ताख़ियाँ॥
किसने लिखी है इबारत रिश्तों के एहसास की,
जोड़-घटाना-भाग से शून्य-सी हैं रिक्तियाँ॥
प्रश्न वाचक है लगा हर किसी के द्वार पर,
हालात अपनी सोच कर पूर्णविराम चल दिया।
नाप तौल कर देखते क़ाबिलियत इंसान की,
इंसानियत रख ताक पर सब ढूँढ़ते ख़ूबियाँ॥
सम्बन्धों के बंधन हों सम, सम हो बंधों का सम्बन्ध,
दोस्त सभी बन जाएँगे ख़त्म होती हैं तीरगियाँ॥
नहीं पराई बेटी कोई, न वस्तु वह कोई है,
घर की बेटी, बहू हमारी देती हरदम हैं ख़ुशियाँ॥