ख़्वाब मेरे
जैनन प्रसादमैंने तारीफ़ में उसके
कुछ लिखा ही नहीं।
चाँद बादलों के पीछे था
दिखा ही नहीं।
दिख भी जाता तो चाँद को
छूने की मेरी औक़ात कहाँ।
इन बहानों के सिवा अब
कहने को कुछ रखा ही नहीं।
सोचा की क़ैद कर लूँ
आँखों के समुन्दर में ।
पर वक़्त मेरे हिसाब से
रुका ही नहीं।
घटायें लौट आयी हैं
मेरी नासमझी पर।
चुने थे फूल जो किताबों के लिए
बरसों तक सूखे ही नहीं।