खुल रहा है आलोचना का नया गवाक्ष

01-05-2024

खुल रहा है आलोचना का नया गवाक्ष

शिखर जैन (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

चर्चित पत्रिका: धरती-21, आलोचना अंक
संपादक: शैलेन्द्र चौहान
संपर्क: 34/242, सेक्‍टर-3, प्रतापनगर, जयपुर-302033
मो. 7838897877

‘धरती’ के ताज़ा अंक संख्या-21 (आलोचना एवं पुस्तक चर्चा) पर सुप्रसिद्ध आलोचक डॉ. जीवन सिंह ने हिंदी आलोचना की वर्तमान स्थिति पर महत्त्वपूर्ण टिप्पणी की है। “मुझे कल पत्रिका मिल गई है। आलोचना केंद्रित सुविचारित अंक के लिए हार्दिक बधाई। यद्यपि आलोचना से माँग बड़ी है लेकिन वह न तीन में है न तेरह में। जबकि समय को रचना से अधिक विश्लेषण की ज़रूरत है। बहुत गंभीर और बड़ा वैचारिक और नैतिक संकट है। सब कुछ अपने भीतर सिमट रहा है। आलोचना का काम होता है चीज़ों को बाहर निकालना, उसके बिना लोकतंत्र सम्भव ही नहीं है। आलोचना न होती तो लोकतंत्र भी नहीं होता। बाल्तेयर अपने समय का बड़ा आलोचक ही था। गाँधी, नेहरू, भगतसिंह के यहाँ एक पूरा आलोचना जगत ही है। रचना कई बार आत्मकेंद्रित करती है और एक बहुत छोटी सी, संकीर्ण दुनिया में घुमाती रहती है।”

धरती, बहुत लंबे समय से निकलने वाली साहित्य के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित पत्रिका है। इसने अनेक महत्त्वपूर्ण विशेषांक प्रकाशित किए हैं। इसका ताज़ा अंक आलोचना केंद्रित अंक है। 

इसमें स्वातंत्र्योत्तर हिंदी आलोचना पर शैलेन्द्र चौहान का संपादकीय सुगठित एवं संतुलित है। विगत सात दशकों की हिंदी आलोचना और आलोचकों का संक्षिप्त ब्योरा इसमें बख़ूबी समेट लिया गया है। भवदेव पांडेय जी का लेख आलोचना में असहमति का सिद्धांत नये लेखकों और आलोचकों के प्रबोधन के लिए अत्यंत आवश्यक है। उनका कहना है, “आलोचना का विकास असहमति के परिप्रेक्ष्य में ही होता रहा है परन्तु यह जानना ज़रूरी है कि असहमति की ज़मीन अनुत्पादक नहीं होती। असहमति तो वह उपकरण है जिसके द्वारा बंजर पड़ती भूमि की जुताई करके नये बीजांकुरण का समय उत्पन्न किया जाता है।” डॉ. रामविलास शर्मा का आलेख ‘सौंदर्यबोध और कलाओं का विकास’ पढ़ना स्वयं को संवर्धित करना है। ओमप्रकाश ग्रेवाल का आलेख हिंदी कहानी का मौजूदा पड़ाव 21वीं शती के प्रथम दशक की महत्त्वपूर्ण कहानियों का वस्तुगत विश्लेषण है। हिंदी कहानी के अध्येताओं और शोधार्थियों के लिए बहुत उपयोगी है। गत दो एक वर्षों में आई ज़रूरी किताबों पर चर्चा, टिप्पणी और समीक्षाएँ इसमें समाहित हैं। मोहन डहेरिया, कौशल किशोर, हृदयेश मयंक, भानुप्रकाश रघुवंशी, हरगोविंद पुरी, रंजीत वर्मा, प्रभा मुजुमदार और कृष्ण प्रताप सिंह की कविता पुस्तकों पर चर्चा और टिप्पणियाँ इसमें शामिल हैं। कवयित्री अनामिका की बहुचर्चित पुस्तक ‘टोकरी में दिगंत’ की जनसंदेश टाइम्स समाचार पत्र के संपादक सुभाष राय ने बहुत गहनता संग्रह की परख की है। योगमाया सैनी की कविताओं पर डॉ. जीवन सिंह ने अपना मंतव्य प्रस्तुत किया है। अपने समय के सुप्रसिद्ध जनगीतकार मुकुट बिहारी सरोज के गीतों पर अजय तिवारी की आत्मीय टिप्पणी है। अष्टभुजा शुक्ल ने महेश कटारे सुगम की बुंदेली ग़ज़लों पर डूबकर लिखा है। रामकुमार कृषक की डायरी दास्ताने दिले नादां पर हीरालाल नागर ने विस्तार से लिखा है। स्वयंप्रकाश की पुस्तक ‘धूप में नंगे पाँव’ पर सेवाराम त्रिपाठी ने मित्रतापूर्ण प्रशंसा भाव से लिखा है। गोविंद सेन के कहानी संग्रह ‘अधूरा घरÆ की समीक्षा प्रकाश कांत ने की है। रमेश खत्री की आलोचना पुस्तक आलोचना का जनपक्ष पर भी विस्तार से बात हुई है। 

धरती का यह अंक आलोचना और पुस्तक चर्चा के माध्यम से संप्रति आलोचना के लिए नये गवाक्ष खोलता है। यही इसकी सार्थकता है। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें