ख़ुदा है, कहाँ? 

01-12-2021

ख़ुदा है, कहाँ? 

जस राज जोशी 'लतीफ़ नागौरी' (अंक: 194, दिसंबर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

रशीद मियाँ बिना तर्क किये किसी विचार पर एक मत नहीं होते, वे हमेशा हर विषय के मुद्दे पर बहस करके बाल की खाल खींचा करते थे! इस कारण मोहल्ले का कोई मुरीद उनसे किसी बात पर उलझता नहीं! एक बार ऐसा हुआ, सबाह-सबाह उनकी मुलाक़ात हो गयी मियाँ अल्लानूर से! मियाँ अल्लानूर अभी-अभी मस्जिद से वहीदुद्दीन साहब की तक़रीर सुनकर ही आये थे! और, तभी जनाब रशीद मियाँ ने उनको आवाज़ दे डाली, “अरे ओ मियाँ अल्लानूर! कहाँ से आ रिया हो, मियाँ?” 

“ज़रा मस्ज़िद से वहीदुद्दीन साहब की तक़रीर सुनकर आ रिया हूँ, मियाँ!” पास आकर सकुचाते हुए मियाँ अल्लानूर ने कहा। 

“यानी ख़ुदा के घर . . . ? अरे मियाँ, ख़ुदा है कहाँ? साफ़-साफ़ कहो ना, पनवाड़ी की दूकान से पान खाकर आ रिया हूँ?” मज़ाक़ उड़ाते हुए, रशीद मियाँ बोल उठे। 

एक तो उनको ख़ुदा पर अटूट भरोसा, और दूसरी बात अभी-अभी वहीदुद्दीन साहब की तक़रीर जो उनके दिमाग़ में छायी हुई थी! बरबस मियाँ अल्लानूर बोल उठे, “मियाँ! ज़बान सँभालकर बात कीजिये, ख़ुदा को वही इंसान समझ सकता है, जो उसके नूर को पहचानता है। समझे, मियाँ रशीद?” 

तभी न जाने कहाँ से रशीद मियाँ के लख़्ते जिगर वहीद मियाँ वहाँ आ पहुँचे, वहीद मियाँ काफ़ी घबराए हुए थे। अब्बा हुज़ूर को वहाँ खड़े पाकर वे निकट आये और, कह उठे, “अब्बा हुज़ूर! जल्दी से मुझे पाँच हज़ार रुपये दीजिये, अस्पताल में भर्ती अम्मी जान का ऑपरेशन होना है . . . । डॉक्टर ने क़रीब पाँच हज़ार रुपयों की दवाइयाँ मँगवाई है, जल्दी कीजिये अब्बू!” अब ना तो मियाँ रशीद की जेब में इतने रुपये, और न वे बैंक जाकर खाते से पैसे निकलवा सकते थे . . . क्योंकि आज का दिन ठहरा इतवार! फिर क्या? बेचारे रशीद मियाँ का मायूस चेहरा भाँपकर, रहमदिल मियाँ अल्लानूर ने अपनी जेब से पाँच हज़ार रुपये निकाले और उनकी हथेली पर रुपये रखकर बोल उठे, “जल्दी करो, रशीद मियाँ! तुरंत अस्पताल पहुँचो, दवाइयाँ लेकर!” 

अब घबराये हुए मियाँ रशीद की फ़िक्र काफ़ूर हो गयी, और वे कहने लगे, “मियाँ अल्लानूर! तुम तो मियाँ, आज़ ख़ुदा के रूप में यहाँ आये और आपने मेरी मदद की!” 

“अब तो मियाँ रशीद, आप समझ गए ना . . . ? ख़ुदा अपने हर बन्दे की तकलीफ़ों में उसकी मदद करता है! यानी, इस ख़िलक़त में ख़ुदा ज़रूर है, और वह तकलीफ़ों में अपने बन्दों मदद करता है! अब तो मियाँ, आप मान गए ना, ख़ुदा ज़रूर है? अब यह कभी मत कहना कि, ख़ुदा है, कहाँ?" 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें