कश्मीर के पंडितों का दर्द बयाँ करती–‘द कश्मीर फ़ाइल्स’
डॉ. वासुदेवन ‘शेष’कश्मीर हमारे देश का सरताज है। धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो वह कश्मीर है। कश्मीर में हिंदू पंडित और मुस्लिम, सदैव भाई-चारे और सौहार्दपूर्ण वातावरण में एकसाथ मिलकर रहे हैं। लेकिन यह दुर्भाग्य रहा कि जनवरी सन् 1990 में कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से खदेड़ दिया गया और अपने ही देश के नागरिक पंडितों का बड़ा निर्ममता से नरसंहार किया गया। मासूम बच्चों, लड़कियों, महिलाओं, बुज़ुर्गों को भी नहीं बख़्शा गया। महिलाओं की इज़्ज़त लूटी गयी। कई लोगों की हत्या उनके परिवार वालों के सामने ही बेरहमी से की गई। मस्जिदों से यह ऐलान किया गया कि कश्मीरी पंडित अपनी औरतों को यहाँ छोड़ जाएँ और मर्द कश्मीर छोड़ दें।
द कश्मीर फ़ाइल्स के निर्देशक श्री विवेक रजंन अग्निहोत्री जी ने बड़ी मेहनत और हिम्मत से अपनी जान की परवाह न करते हुए इस फ़िल्म को आमजन तक पहुँचाया है। 32 साल के पुराने दाग़, ज़ख़्मों को उन्होंने उकेरा है। आमजन जो पंडितों के बेघर हो जाने और कश्मीर छोड़ने की वजह वहाँ के आतंकवाद को देख कर डर के मारे चले गए, ऐसा ही मान रहे थे। लेकिन उसके पीछे की सच्चाई जब इस फ़िल्म को देखकर उजागर हुई तो पता चला कि कितना अत्याचार, जुल्म उनपर ढाया गया। कई पत्नियाँ विधवा हो गईं कई बच्चे अनाथ हो गये। कई घरों की जवान बेटियों की अस्मत लूटी गयी और सरकार तमाशबीन बन खड़ी देखती रही। गिरिजा टिक्कू के साथ जो बर्बरता की गयी उसे देखकर नहीं लगता कि यह लोग सच में अल्लाह के बंदे हैं। शैतानियत और हैवानियत की सब हदें पार कर दीं। इस फ़िल्म में किरदार निभाने वालों श्री अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, पल्लवी जोशी, दर्शन कुमार और अन्य सभी ने अपनी जान जोखिम में डालते हुए लोगों के सामने इस क्रूरता और बर्बरता को उजागर किया। मेरे भी आँसू रुक नहीं रहे थे; सिनेमा हाल में बैठे सभी की आँखों में आँसू ही थे।
लेकिन इस देश का दुर्भाग्य है कि कुछेक संकीर्ण मानसिकता के लोग इसे झूठी फ़िल्म बता रहे हैं, उसका मज़ाक उड़ा रहे हैं। ठहाके मार के हँस रहे हैं। वो इसलिए हँस रहे हैं कि ये हदसा उनकी बेटी के साथ नहीं हुआ। अगर यह हादसा उनके परिवार के लोगों के साथ होता तो उन्हें असल दर्द का पता चलता। पूरे विश्व में इस फिल्म के माध्यम से कश्मीर की सच्चाई पता चल गयी है। आज मेरा मानना है केन्द्र सरकार के लिए केवल इस फ़िल्म को कर मुक्त करना ही समाधान नहीं है बल्कि उन सभी बाक़ी बचे हुए हमारे कश्मीरी पडितों को बाइज़्ज़त उनके पैतृक निवास पर पुनर्स्थापित करना है। उनकी संपति, घर, नौकरी, व्यापार लौटना ताकि वह अपने आशियाने में सुकून चैन से रह सकें। और उन इंसानियत और मानवता के हत्यारों को कड़ी से कड़ी सज़ा देना कि फिर से ऐसी घिनौनी हरकत न कर सकें। कश्मीर में प्रशासन की व्यवस्था कड़ी करना जहाँ इस प्रकार की घटना को दुबारा न दोहराया जा सके। मैं फ़िल्म के निदेशक और उनकी पूरी टीम को बधाई देता हूँ।