कर्त्तव्य की कंचन रेखा
मनीषा कुमारी आर्जवाम्बिका
वो धूप में साया, रातों की चाँदनी
वो मौन में वाणी, पीड़ा में रागिनी
हर रूप में उसकी ज़िम्मेदारी है
जीवन की सच्ची पहरेदारी है
सपनों को अपने वो पीछे रखती
सबकी ख़ुशी में ख़ुद को रखती
घर हो या बाहर, सदा तत्पर
हर काम को करती वो सुंदर
बच्चों की शिक्षा, बुज़ुर्गों का ध्यान
संस्कारों का देती सबको ज्ञान
कंधों पे बोझों की लम्बी क़तार
फिर भी होंठों पे रहती फुहार
कर्त्तव्य की कंचन रेखा
नारी ने ख़ुद ही खींची है
संघर्षों की धूप है झेली,
फिर भी आँख न भींची है
अब वक़्त है उसको समझा जाए
उसके समर्पण को माना जाए
नारी है वो, नारी ही शक्ति
धैर्य, विवेक और कर्म की भक्ति