कहाँ गया बड़ों के नाम के आगे का ’श्री?’ 

15-06-2022

कहाँ गया बड़ों के नाम के आगे का ’श्री?’ 

गौरव हिन्दुस्तानी (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

भारत विश्व भर में अपनी संस्कृति एवं सभ्यता के लिए विख्यात है परन्तु आधुनिकता इतनी तेज़ी से अपने पैर पसार रही है कि उसका प्रभाव सम्पूर्ण भारत पर, भारतीय संस्कृति पर एवं भारत की सभ्यता पर साफ़ देखा जा सकता है। वर्तमान में चल रहे मेरे एक शोध में (जो कि सोशल मीडिया से सम्बन्धित है) एक ऐसा दृश्य सामने आया जो वास्तव में आश्चर्यचकित करने वाला है जिस पर हमारी दृष्टि या तो पड़ नहीं रही है या फिर हम ऑंखें बन्द किये हुए हैं। मेरे चल रहे शोध में विद्यार्थियों (विश्वविद्यालय स्तर के १२० विद्यार्थी पर किया गया) से कुछ व्यक्तिगत जानकारी भी ली गयी जैसे पिता का नाम। आश्चर्य करने वाला तथ्य यह है कि किसी भी विद्यार्थी ने अपने पिता का नाम भरते समय पिता के नाम के आगे “श्री” नहीं लगाया जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। वर्तमान में भारत की साक्षरता दर लगभग ७४% है लेकिन नैतिक शिक्षा का पहला पाठ ही हमारी युवा पीढ़ी भूलती जा रही है। भारतीय समाज में यह परम्परा रही है कि जब भी कोई बच्चा अपने पिता, अपनी माता या अपने बड़ों का परिचय देता है तब श्री, श्रीमती अवश्य लगाना चाहिए। गाँवों तक में किसी बच्चे के द्वारा अपने बड़ों का परिचय देने पर यदि श्री नहीं लगाया जाता था तब गाँव के अशिक्षित लोग तक टोंक देते थे कि बेटा बड़ों के नाम से पहले “श्री” लगाते हैं। फिर वर्तमान में युवा पीढ़ी अपने संस्कारों में पिछड़ क्यों रही है? 

मैंने इसके कारण के बारे में जानने का प्रयास किया और विश्लेषण किया तब यह पाया कि अधिकांशतः किसी भी प्रकार का ऑनलाइन फ़ॉर्म (चाहें सरकारी फ़ॉर्म हो या फिर किसी भी प्राइवेट संस्था का फ़ॉर्म) भरते समय वहाँ पिता के नाम आगे का श्री नहीं भरवाते हैं यहाँ तक कि साफ़ मना कर देते हैं कि श्री, श्रीमती न लगाएँ। क्या यह सभ्यता, संस्कारों का हनन नहीं है? क्या यह संस्कारों के पहले पाठ की मृत्यु नहीं है? 

फ़ेसबुक, ट्विटर एवं यूट्यूब आदि जैसी सोशल मीडिया वेबसाइट पूरी दुनिया का डेटा व्यवस्थित कर रहीं हैं तो क्या “श्री” को व्यवस्थित करने में इतनी समस्या आती है कि उसको सभी फ़ॉर्म से हटा दिया गया है। हमें ऐसी असहनीय त्रुटियों के लिए आवाज़ उठानी चाहिए। यदि ऐसे ही संस्कारों के पहले पाठ में ही फ़ेरबदल होते रहे फिर आगामी पीढ़ी को नैतिक शिक्षा के अर्थ को समझाना बहुत जटिल हो जायेगा। यदि वास्तव में हम अपनी संस्कृति, अपने बच्चों में संस्कारों को बचाये रखना चाहते हैं तब हमें ऐसी भूल सुधारनी होगी तथा किसी भी सरकारी एवं प्राइवेट संस्था के फ़ॉर्म में अपने बड़ों के नाम के आगे “श्री” लगाने के कॉलम की माँग करनी होगी। 

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