काग़ज़ और क़लम
डॉ. करिश्मा वरलानीमैं काग़ज़ क़लम,
मनुष्य के जीवन की
सबसे हसीं दोस्त...
मैं कभी जन्म का पैग़ाम
तो कभी मौत का फ़रमान हूँ,
कभी ख़ुशी से लिखा कोई गीत,
तो कभी क्रोध की
लकीर मैं हज़ार हूँ,
कभी प्रेम पत्र,
कभी शोक संदेश,
तो कभी
इनकार-ए-जज़्बात हूँ,
मैं काग़ज़ क़लम
अल्फाज़-ए-मुख़्तार हूँ,
युगों में बदला स्वरूप मैंने अपना
कभी पत्र स्याह,
तो कभी वृक्ष से प्राप्त निर्यास हूँ,
कभी युद्ध का आग़ाज़
तो कभी सुलह का साक्षात्कार हूँ
होते हज़ारों जज़्बात जब जीवन में
मैं मानव की ही तो लिखी आवाज़ हूँ
चाहे तो रच दे एक संगीत मुझसे
नहीं तो दु:ख के नग़्मे में मैं इस बार हूँ
मैं काग़ज़ क़लम तुम्हारी सबसे क़रीबी,
मैं ही जन्म का पैग़ाम
मैं ही मौत का फ़रमान हूँ॥