कब क्यों?
सीमा रंगा ‘इन्द्रा’
कभी कभार कितने लोग
मिलते हैं अनजाने में
दिल की दहलीज़ पर क़दम
बस कुछ ही रख पाते हैं।
कोई घमंड में चूर हो
कोई वास्तविकता से कोसों दूर
चला जाता है यूँ ही
निकल पड़ते हैं अंबर नापने।
मिलेगा मुझे भी अंबर
यही चाहत धकेल देती है
पर मिलता नहीं वह
विलक्षण अनोखा संसार।
आनंदित तो मैं भी होता हूँ
देख आलौकिक प्रेम को
क्षणिक सुख की ख़ातिर
भुला देते हैं सब कुछ।
कर लिया अहंकार
रह लिए कोसों दूर
आओ बैठो तनिक पास
चलो करें बातें पूछें हाल-चाल।
कमसिन से कैसे वृद्ध हुए, पूछें
झुरियों वाले चेहरे का हाल
क्यों कब कौन कहाँ कैसे?
आओ ना सिर्फ़ उत्तर ढूँढ़े।
जवानी चली गई
बुलावा पास है
फिर किसका इंतज़ार
आओ सिर्फ़ प्रेम करें॥