जीवन का आशय
डॉ. केवलकृष्ण पाठक
ना ही अर्थ रहित है जीवन
ना ही अर्थ सहित है जीवन
यह तो बस सौभाग्यपूर्ण है
अहोभाव से जीना जीवन
अवसर अपने कार्यक्षेत्र का
सदा सौम्य मूर्ति होने का
इच्छा रहित ना इच्छापूर्ण हो
सहज भाव से है जीने का
अर्थ व जीवन अलग अलग है
अर्थ मात्र है तर्क विचार
अर्थ तो है जीवन से भिन्न
तर्क भी है जीवन से भिन्न
तर्क नहीं जीवन आधार
जीवन तो बस जी कर देखें
साक्षी भाव से ही है रहना
मस्ती व सद्भाव में रहकर
नहीं किसी से कुछ भी कहना
आनन्द की लहरों में जाकर
शान्ति से ही जग में रहना
बस जीवन क आशय है यह
सत्य प्रेम सद्भाव में रहना।