जिज्ञासा

15-03-2022

जिज्ञासा

कुमार विपिन (अंक: 201, मार्च द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मेरी चिर-जिज्ञासा थी
मैं उड़ता बीच गगन के भी
खंजन संग मैं होड़ लगाता, 
पर होते जो मेरे भी॥
 
कोकिल सा मैं कभी कूकता
चकवे संग मैं कभी बैठता
नित! नए-नए मैं राग सुनाता
पर होते जो मेरे भी॥
 
दूध भरे दानों को खाता 
ऊँचे-पेड़ पर वास बनाता 
चढ़ी नदी में रोज़ नहाता
पर होते जो मेरे भी॥
 
देश-प्रदेश ख़ूब मैं जाता
यात्राओं का लुत्फ़ उठाता 
मौसम का मैं हाल बताता
पर होते जो मेरे भी॥

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