जीवन
कवि भरत त्रिपाठी
(तोटक छंद)
यह जन्म मिला कनकाभ हमें,
मुख तेज मिला अरुणाभ हमें।
मृदुला व्यवहार रखें सबसे,
प्रभु वृष्टि सनेह करें नभ से।
सह घाम विभा कम हो न कभी,
सुन लो नयनों! नम हो न कभी॥
अपनेपन के प्रतिमान बनें,
अवलंब सदा भगवान बनें।
विधु के सम रश्मि वितान बनें,
सत कर्म सुधा रस पान बनें।
अपरार्क बनें तम हो न कभी,
सुन लो नयनो! नम हो न कभी॥
मन से अभिसिप्त करो सबको,
सरिता सम तृप्त करो सबको।
नभ पंथ सदा अपना रखना,
धरती पर पाँव जमा रखना।
हिय शोक न हो भ्रम हो न कभी,
सुन लो नयनो! नम हो न कभी॥
तरु शीतलता नभ वृष्टि करें,
उपकार दिवाकर दृष्टि करें।
हम दीन दुःखी भरतार बनें,
सहयोग करें सहकार बनें।
धन-वैभव के हम हों न कभी,
सुन लो नयनो! नम हो न कभी॥