जीवन अपना नहीं

01-12-2023

जीवन अपना नहीं

सतीश ‘बब्बा’ (अंक: 242, दिसंबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

अब समझ में आया, 
बचपन में माँ का साया,
जब जीवन अपना था,
तब अपने समझ में नहीं आया! 
 
फिर पत्नी आई, 
जीवन बनकर, 
तब भी कुछ हद तक,
जीवन अपना था! 
 
जैसे-जैसे उमर बढ़ी, 
समझ बढ़ी, समझ आया, 
जीवन अपना नहीं है,
यह राज़ जान पाया! 
 
जब पत्नी का साथ छूटा, 
कहने लगा करम फूटा, 
यह सब बातें हैं बकवास, 
जीवन नहीं है अपना ख़ास! 
 
अब तो यह लगता है सच,
इसमें नहीं किसी का बस, 
यह जीवन अपना नहीं है,
लड़ते हैं बेकार परवश!! 

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