इंतज़ार (शबनम शर्मा)
शबनम शर्मानहीं लिखनी है मुझे कविता,
नहीं बाँधना है मुझे किसी भी
जज़्बात को शब्दों के जाल में,
नहीं दुखाने हैं मुझे इन
नादान अक्षरों के दिल,
अब बहुत हो चुका,
थक गई हूँ मैं,
पथरा गई हैं मेरी आँखें,
मुझे सिर्फ़ करना है अब,
तुम्हारा इन्तज़ार, ज़िन्दगी की
नाव में, यादों की पतवारों के साथ,
उस जल पर जो तुम्हें प्रिय,
जिसकी लहरों में है वो उतार-चढ़ाव
जो तुमने दिये,
जिन पर चढ़ना अच्छा लगा,
और उतरने पर विछोह,
ले जाये वह हमें उस किनारे,
जहाँ पर तुम्हें इंतज़ार हो नाव का,
उस पार जाने के लिए।