इन दिनों वो भूख देखी
सतीश कुमार पालइन दिनों वो भूख देखी
जो सब्र का बाँध तोड़े
बह रही आँखों से थी
इन दिनों वो हृदय देखा
दर्द से कराहता हुआ
कोने में कहीं ले रहा था सिसकियाँ
आवाज़ें इन सिसकियों की
जाती थी दूर तलक,
झिंझोड़ती वेदना वाले
कुछ शब्द भी दे जाती
बदले में ढ़ेरों ये आश्वासन ले जाती
भूख दर्द के इस आलम में
पास ही बिफरें पड़े थे ,
वो रोटियों के चंद टुकड़े
फर्श पर बिखरे पड़े थे
आँसुओ से मिलकर गीले हुए निढाल से
फर्श पर आसन जमाएं
लगा टकटकी बस चोरों और ताक रहे थे
पर कौन इनको ग्रहण करता
मौत का तांडव मचा था
सूखे सबके मुँह
पीड़ा से विह्वलें खड़े थे
गुमनाम सी मौत के
कुछ शव पड़े थे
इन दिनों वो भूख देखी
जो रुन्दन के चरम से,
बंद मुख के भीतर ही
दब गई थी कहीं
इन दिनों वो भूख देखी....!!!
3 टिप्पणियाँ
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अति सुन्दर व दिल को छू लेने वाली कविता , साधुवाद श्री मान जी को।
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Uttam............
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True lines.....