हृदय के विचार
नवल पाल प्रभाकरआज मेरी सीमाओं का
बाँध सा टूटा जाता है।
उफन-उफन कर यूँ समुद्र
लहरों में बिखर जाता है।
इसके साथ में आने वाले
लाखों शंख अगिनत सीपी
धूमिल होकर आँखों आगे
अँधेरा-सा छा जाता है।
उफन-उफन कर यूँ समुद्र
लहरों में बिखर जाता है।
नीले आसमान की भाँति
मन नदी में बढ़ कर पानी
किनारों के ऊपर चढ़ जाए
किनारा पक्का टूट जाता है।
उफन-उफन कर यूँ समुद्र
लहरों में बिखर जाता है।