गुलशन
सूर्यप्रकाश मिश्रावो दूर कहीं से
मुझको देख जब मुस्कराती है,
हँसता है दिल
पर चेहरे पे नमी छा जाती है।
खिलते हुए फूलों में
अक्स उसका ही नज़र आता है,
मेरे घर के आँगन में
भीनी सी ख़ुश्बू फैला जाती है।
केशर के फूल सरीखी
वो चंदन सी शीतल है,
जब भी में तनहा होऊँ
वो माँ सी बन जाती है।
जीवन की आपाधापी में
बिछुड़ गए हैं हम,
उपवन की हर ख़ुश्बू
मुझे उसकी याद दिलाती है।
जीवन के रिश्ते से प्यारा
ये बड़ा कोमल बंधन है,
सूना है घर उसके बिना
कभी बेटी कभी बहन कहलाती है।