घी रोटी! 

15-04-2024

घी रोटी! 

सूरज सिंह राजपूत (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

माँ, मेरे हिस्से की क्या हुई? 
क्या वह सच में बहुत अच्छी होती है? 
स्कूल में, 
हर दिन कोई ना कोई लाता है
घी रोटी! 
 
मैं . . . 
माँ मैं कभी क्यों नहीं ले जाता? 
तुम तो हमेशा कहती हो . . . कल ले जाना! 
कल, कल
ये कल कब आएगा? 
अब तो, 
माँ अब तो सब मुझे चिड़ाते हैं . . . प्याज़ रोटी! 
 
माँ, 
पापा कब लायेंगे? 
घी रोटी! 
वो कहाँ गए? 
कब आयेंगे? 
कब लायेंगे? 
घी रोटी! 
 
मुझे याद है
पापा लाए थे . . . 
बहोत पहले
अंडे की सब्ज़ी और घी रोटी, 
पापा अपने हाथों से खिलाए थे! 
अब इतने दिनों से नहीं आए, 
सब लोग बुरे हैं . . . 
उनके शरीर घी मल दिया
और न जानें कहाँ ले गाए? 
पापा को कंधे पर झूला झुलाते . . . 
 
माँ, 
क्या पापा घी लेकर गए हैं लाने को रोटी? 
सब लोग खाए थे तब हमारे घर
पूरी पकवान और दही भी! 
अब कोई नहीं आता हमारे घर, 
माँ, तब मैं तीसरी कक्षा में था। 
माँ तू, तू न रो, 
मुझे नहीं चहिए
घी रोटी! 
 
अब मैं पाँचवीं कक्षा में हूँ! 
जब बड़ा हो जाऊँगा, 
मैं लेकर आऊँगा। 
पापा को भी बुलाना, 
हम साथ खाएँगे, 
घी रोटी! 

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