घर की खोज में 

01-07-2022

घर की खोज में 

प्रो. मनोहर जमदाडे (अंक: 208, जुलाई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

शहर से बहुत दूर एक घना जंगल था। उसमें कई प्रकार के प्राणी रहते थे। नदी के कारण जंगल दो भागों में विभाजित हो गया था। जंगल की एक ओर पहाड़ था तो दूसरी ओर छोटा सा क़स्बा। दोनों जगह प्राणियों का आवास था। नदी का पानी कम होने पर प्राणी यहाँ से वहाँ आवागमन करते थे। धूप के दिनों में नदी का पानी कम होने पर एक शेर पहाड़वाले जंगल में चला गया। जंगल के घनेपन ने उसे ख़ूब आकर्षित किया। वहाँ जाकर वहीं का हो गया। कुछ साल तक उसे क़स्बेवाले जंगल की याद तक नहीं आई। उसका जीवन आनंद से बीत रहा था। 

एक दिन अचानक पहाड़ वाले जंगल को आग लग गई। शेर अपनी जान बचाकर नदी पार करता हुआ क़स्बेवाले जंगल की ओर भागा। नदी पार करते ही उसे सबकुछ अनजान सा महसूस होने लगा। घने जंगल की जगह बड़ी-बड़ी इमारतें दिखाई देने लगीं। चारों तरफ़ लंबी-चौड़ी सड़कें दिखने लगीं। सड़कों पर हवा से भी तेज रफ़्तार से गाड़ियाँ दौड़ती जा रही थीं। शान्ति की जगह कोलाहल ने ली थी और पेड़ की जगह इमारतों ने। 

अपने घर की खोज में शेर दिन-रात भटकता रहा, पर उसे जंगल का कहीं भी ठिकाना पता नहीं लगा। नदी की चारों ओर बस इमारतें ही इमारतें दिखाई देती रहीं। उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। बस! वह घर की खोज में पागलों की तरह भटकता ही रहा। 

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