गाँधीगिरी
बिपिन कुमार चौधरीसत्य अहिंसा का देकर नारा,
जीवन भर वह अटल रहे,
देश परदेश में सहा सितम,
कब कहाँ वो विकल रहे,
दुर्बल तन और निर्मल मन,
संघर्षपथ पर सदा अविरल रहे,
यातनाएँ सहीं, पीड़ाएँ झेलीं,
चरखा चला, मचाते हलचल रहे,
फिरंगियों के नाक में करके दम,
देश आज़ाद कराने में सफल रहे,
की नहीं कभी पद की चाह,
जीवन भर वह सरल रहे,
सत्ता के हवसी लेकर उनका नाम,
दुर्भाग्य, हर पल जनता को छल रहे,
पूछता है, यह दुःसाहसी बिपिन,
सही में गाँधीगिरी पर कौन चल रहे . . .