गधे का दुख

इन्दु शर्मा

गधा गधी से बोला ढेंचू ढेंचू,
थक गया बहुत अब और कितना खेंचू,
 
सुबह से चला था उठाके ये बोझ,
न उठाऊँगा और, सोचता था मैं रोज
तंग गलिओं में आते-जाते यूं रात हो गई
पल भर सुस्ताने की बात खो गई
मंज़िल नहीं दिखती, नज़र दूर-दूर तक फेंकू
गधा गधी से बोला ढेंचू ढेंचू
थक गया बहुत अब और कितना खेंचू.
 
मोर्त्गेजे है या "मौत का गेट"?
या है ये ताड़का?
कितना भी डालो भरे नही पेट
हीट और बिजली के बिल हैं बडे-बडे
ऐसा यज्ञ, जिसमें स्वाहा होते नोट हरे-हरे
 
गधी गधे से बोली, "सुन मेरे प्यारे!
न छोड़ो यूँ हिम्मत, रहो यूँ न हारे- हारे,
भूल जा कभी तू राजा था मैं रानी थी,
जो बीत गया वो कहानी थी
मिलकर खींचेंगे गाड़ी
हिम्मत रख, आएगी अपनी भी बारी,
मिलेगी हमें भी सोने की रोटी,
तू खाए मैं सेंकू,
गधा गधी से बोला ढेंचू ढेंचू
थक गया बहुत अब और कितना खेंचू,
 
गधे ने रखा सिर पर हाथ, कहा-
अगर घोड़ा होता तो अच्छा होता,
मालिक को लेकर सरपट-सरपट दौड़ता,
रेशमी पूंछ लहराता,
सिंह होता, फिर तो क्या बात होती,
मस्तानी चाल, ऊंची दहाड़,
जंगल में अपनी धाक होती
मेरी धेंचू धेंचू से तो भली चूहे की चूँ - चूँ!!

देख गधे का दुख, मन भर आया गधी का
थपकी उसकी पीठ, गले को सहलाया
अरे गधे! तू क्यों विचलित, लाचार है?
अरे, तू तो कर्मण्यता का अवतार है!
समय की धुरी में तेरी ही शक्ति है,
तेरी तरह उसमें भी पुनरावृत्ति की
अभिव्यक्ति है,
बावरे! यहाँ सिंह बन कर किसका
हुआ गुजारा है,
जो गधे रहे वही सुखी रहे,
बाकी जग तो दुखियारा है,
इसलिए न कर सन्ताप,
चल मैं भी तेरे साथ रेंकू
गधा गधी से बोला ढेंचू ढेंचू,
थक गया बहुत, अब और कितना खेंचू.

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