गीत कहीं कोई गाता है
अजय चंदेलहो निराश मन कुंठित जीवन,
गन्तव्यहीन, करे पथ क्रंदन,
व्यर्थ हो रहे हों आश्वासन,
अनायास एक सुर कानों में,
अग्रदूत सा बन जाता है,
गीत कहीं कोई गाता है।।
गीत कहीं कोई गाता है ...
नित सिंचित कर पोषित करता,
तब जाकर एक पुष्प है खिलता,
माली के मन को ना पूछो,
छनक छनक जाता है,
जब उपवन में कुसुमावली पर
भँवरा कोई मँडराता है।।
गीत कहीं कोई गाता है ..