एक दिया काफ़ी है . . .

15-10-2022

एक दिया काफ़ी है . . .

शैलेन्द्र कुमार रस्तोगी (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

एक दिया काफ़ी है
अँधियारा मिटाने के लिए। 
 
श्रम की चिकनाई में डूबी
हौसले की एक बाती
आस के दीपक में धर
यदि दो जला . . .
ये जतन काफ़ी है
सपने सच बनाने के लिए। 
 
वो जो अन्तस के निलय में
लग चुके हैं द्वेष-जाले
प्रेम की झाड़ू ज़रा सी 
दो चला . . . 
अपनापन काफ़ी है
रूठों को मनाने के लिए। 
 
प्रगति पथ पर प्रज्ज्वलित
श्रमदान के इस कुण्ड में
तुम जहाँ भी हो वहीं से
अपनी आहुति दो मिला . . .
ये हवन काफ़ी है
नव-निर्माण लाने के लिए। 
 
एक दिया काफ़ी है . . .
अँधियारा मिटाने के लिए। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में