एक दिन पूछा सवेरे से
प्रणित जाधव
एक दिन पूछा सवेरे से
कहाँ से इतनी ताज़गी लाते हो,
और अंधकार को मिटाकर कैसे धरती रोशन करते हो?
क्यों तुम्हारा स्वागत करते हैं, पंछी चह-चहा कर,
और क्यों पेड़ प्रफुल्लित हो उठते तुम्हारी ताज़ी हवा पर?
कैसे चोरी-छिपे, चंद्रमा को विदा करते हो,
और कैसे तपे सूर्यदेव के सौम्य दर्शन कराते हो?
क्यों भोर में नदी लगती है सुहानी,
और कैसे जीवित होकर गाता है पानी?
कैसे नया प्राण भर देते हो हर जीव में,
और रात भर सुस्ताए को कैसे तरोताज़ा करते हो?
क्यों सारी कायनात जगमगाती है तुम्हारे आने से?
एक दिन पूछा सवेरे से