एक दीया…
गौतम कुमार 'सागर'शरद-ऋतु की थाल में
एक दीया शांत सा
अमावस की रात में
एक दिया चाँद सा
पुष्प की पांखुरी
ओस से जगमग हुई
पिया का संदेश पा
हृदय में रौनक हुई
गेरुआ रंग आस का
मन का आँगन लिपा
निराशा का जाला हटा
जो कोने में है छिपा
प्रकृति की पालकी में
नव ऋतु वधू आई
भेंट स्वर्णिम प्रेम का
मांगती है मुँह दिखाई
दीप का संदेश है
आँधियाँ सौ चले
देह मिटे या रहे
प्राण की लौ जले
हर वरदान में है वेदना
हर वेदना वरदान है
राम को वनवास ने
बनाया भगवान है
तारा बन , बिजली नहीं
कि घर हज़ार का जले
भाव रूपी धृत तेल से
दीया प्यार का जले
एक गीत उमड़ पड़ा
अतुकान्त के एकांत सा
शरद की थाल में
एक दीया है चाँद सा