एक बार रुख़े रोशन से
दीपिका सगटा जोशी 'ओझल'पत्थरों के बुत में ख़ुद ही
मुब्तला हो जाएँगे
एक बार रुख़े रोशन से
ये चिलमन उठा कर देखिए
जिल उट्ठेंगीं फिर मेरी मजरूह
हर एक ख़्वाहिशें
इन शबनमी होंठों से
मुझको गुनगुना कर देखिए
इस अन्जुमन में लाजवाब
न हो तेरी ये गुफ़्तगू
अपनी निगाहों की जुबान
हमको सिखा कर देखिए
ले चश्मे-आब ऐ महतब
क्यों देखता ओझल मुझे
इन गूँगी चीखों कि सदा
सबको सुनाकर देखिए
एक बार रुख़े रोशन से
ये चिलमन उठा कर देखिए