डॉ. संजीव कुमार जी की देवी नागरानी जी के साथ बातचीत

15-03-2022

डॉ. संजीव कुमार जी की देवी नागरानी जी के साथ बातचीत

डॉ. संजीव कुमार (अंक: 201, मार्च द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

 

डॉ. संजीव कुमार: साहित्य सृजन में आपकी रुचि कैसे उत्पन्न हुई? किस साहित्यकार से आपको लिखने की प्रेरणा मिली? 

देवी नागरानी: संजीव जी यह एक ऐसा सवाल है जिस के विस्तार को परिधियों में क़ैद नहीं किया जा सकता। साहित्य सृजन ता-उम्र का तवील सफ़र है, आग़ाज़ से अंत तक। जीवन के इस सफ़र में अनेक पड़ाव आते हैं, कुछ चाहे, कुछ अनचाहे और हर पड़ाव के मोड़ पर एक दिशा का संकेत भी मिलता है जहाँ पर बढ़ने की सम्भावना बनी रहती है। क्यों कैसे कब कह नहीं सकते? बस सफ़र की अनुकूलता और अपने भीतर की अस्पष्ट चाह कहीं न कहीं एक सुरंग के भीतर से अपना निर्माण शुरू कर देती है। 

मैंने भी एक ऐसी चाह मन में पाल रखी थी कि अपनी सिंधी भाषा में हमारी इंटरनेशनल अख़बार “हिंदवासी” के लिए कुछ लिखूँ और वह मेरे नाम से प्रकाशित हो। लेकिन इस राह पर मेरी चाहत के सामने रोड़े अधिक थे। सिंधी अरबी लिपि में न लिख पाने की असमर्थता ने राहों में कठिनाइयाँ बढ़ा दी जिसकी वजह से मुझे अपना पहला लेख “नज़ाकत रिश्तों की” जो चार भागों में लिखा गया था। 1995 में देवनागिरी लिपि से अरबी लिपी में लिप्यंतरण के बाद हिंदवासी में प्रकाशित हुआ। यह एक लम्बी कहानी है . . . 

बस यही आग़ाज़ था, फिर अपनी भाषा को सीखने का संघर्ष शुरू हुआ। यहाँ मेरे गुरु व् रहबर आदरणीय प्रभु वफ़ा छुगानी जी रहे जो ग़ज़ल के जाने माने उस्ताद शायर थे। शुरू में उन्होंने मेरे देवानागिरी लिपि में लिखे लेखों का अरबी लिपि में लिप्यंतरण किया और साथ में मुझे अरबी लिपि में लिखने के लिए भी प्रोत्साहित करते रहे। उसी ओर पुख़्तगी से क़दम बढ़ाते हुए मैं उसमें क़ामयाब भी हुई और उनकी रहनुमाई में सिन्धी ग़ज़ल का आग़ाज़ हुआ। 

डॉ. संजीव कुमार: प्रेरणा स्रोत कौन रहा? कैसे लेखन का आग़ाज़ हुआ . . . वग़ैरह . . . वरैरह . . . 

देवी नागरानी: यह प्रश्न अक़्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों में से एक होता है। प्रेरणा के लिए घर परिवार में तो कोसों तक किसी का नाता न था। विभाजन के पश्चात मेरे पिताजी अपनी जीवन नैया ठिकाने लगाने में प्रयासरत रहे। घर में हर छोटे और बड़े सदस्य के लिए विस्थापन एक संघर्ष एक आज़माइश बनकर रह गया। 1948 में हम भाई बहनों की पढ़ाई हिंदी भाषा में शुरू हुई। पिता के कांधों पर अनेक जवाबदारियों का सलीब रहा और हमारे कांधों पर अपने आने वाले भविष्य के सपनों को सम्पूर्ण करने का दायित्व। 

1960 में शादी के बाद एक संपूर्ण बड़े परिवार की सबसे छोटी सदस्य बन कर आई और उस खूँटे से बाँधी गई जहाँ सूर्योदय से सूर्यास्त तक बस घरेलू कामकाज के हल में जोते जाने का कालचक्र बरसों चला; जब तक मेरे अपने तीन बच्चे अपनी पढ़ाई के पश्चात जीवन के पथ पर शादी करके आगे नहीं बढ़े। 

1972 में पति के देहांत उपरांत एक नया संघर्ष आजीविका का, बच्चों की पढ़ाई का शुरू हुआ। उस पालनहारे में अटूट विश्वास था जिसकी डोर थामे हिलती-दुलती नैया को किनारा मिल ही गया। 1983 से 2000 तक मेरे तीनों बच्चों की शादी हो चुकी और वे अपने-अपने घरों में बस गए। कुछ राहत मिली और साथ ही मिली तन्हाई जो रफ़्ता रफ़्ता मेरे इस सफ़र की हमसफ़र बन गई। बीते हुए पलों की याद बार-बार दोहराव का जामा पहन कर मेरे सामने रक़्स करती। बस इसी झूले में झूलते हुए मैं कुछ हल्की सी होकर अपने मन में दबी यादों की पोटलियों खोलती रही . . .

योग और भोग के बीच का समय संगीत, पढ़ाई और कुछ कला के लिए वक़्त निकाल कर ख़ुद को सन्नाटों से बाहर लाने की कोशिश करती रही और उसी कोशिश में एक चिंगारी मन में लेखन की तीव्र इच्छा को जन्म देने लगी। अपनी भाषा में लिखकर सिंधी अख़बार में छप जाने की इच्छा ही शायद मेरी प्रेरणा का स्रोत बनी। 

बस फिर तो एक नया संघर्ष सामने था। 1995 से सिंधी अरबी लिपि का सीखना, लिखना व प्रकाशित होना मेरे हिस्से के आकाश के क्षितिज का केंद्र बिन्दु बन गया। मन में भावना जागे तो स्रोत हमारे भीतर से ही प्रस्फुटित होता है, कहीं दूर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। काग़ज़ हो, क़लम हो और उमड़ती तरंगित भावनाएँ हो, दुख सुख से ओतप्रोत परिस्थितियों के संघर्ष का सामना करने का अनुभव हो। फिर लेखन के लिए भाषा में भाव प्रकट करने की कला अपना काम ख़ुद करती है, एक नदी के प्रवाह की तरह ख़ुद ब ख़ुद अपने रास्ते तराशती जाती है। 

डॉ. संजीव कुमार: आपकी पहली रचना क्या थी और कब प्रकाशित हुई थी? 

देवी नागरानी: वही सिलसिलेवार पहला सिंधी लेख “नज़ाक़त रिश्तों की” 1995 में अन्तराष्ट्रीय पेपर “हिंदवासी में छपा। इसके चार भाग लिखे: रिश्ता पति-पत्नी के बीच, दोस्तों के बीच, विश्वास-अविश्वास की नींव पर, मालिक और गुमाश्ते की सद्भावना पर, औरत और मर्द के बीच की दोस्ती के अलग अलग कोण, जो दोष के कटघरे में खड़े हो जाते हैं। और फिर प्रकाशन का सिलसिला हर रविवार को आगे बढ़ता रहा। यूँ मेरे लेखन से सिंधी लेखक व् पाठक परिचित हुए, जिन्होंने सप्रेम मुझे अपनाया। 

अपनी भाषा में लिखना सहज और नैसर्गिक प्रयास है। लेखन समाज से प्रेरणा पाता है। उसकी प्रासंगिकता तब तक बरक़रार रहती है जब तक उसे सामाजिक दायित्व का बोध रहता है। अगर कहूँ कि मेरा लेखन मेरे जिए हुए यथार्थ की परिणति है, तो कोई अतिश्ययोक्ति न होगी। 

डॉ. संजीव कुमार: आपका रचना संसार बड़ा व्यापक है? कृपया अपनी कृतियों का उल्लेख करें। 

देवी नागरानी: संजीव जी मेरा सिंधी लेखन का आग़ाज़ तो 2004 में हुआ, पर धीरे-धीरे हिंदी भाषा की ओर लगाव बढ़ता गया और कुछ अँग्रेज़ी के लेखन के भी मौक़े मिले। फिर अचानक ही अपने तमाम लेखन से दरकिनार होकर अनुवाद के तट पर आन पहुँची। 2012 से 2018 तक मात्र अनुवाद करती रही। सिन्धी से हिंदी, हिंदी से सिंधी व् अन्य भाषाओं की कहानियों का। मेरी रचनाओं व् पुस्तकों का भी सिंधी, उर्दू, अँग्रेज़ी, पंजाबी, मराठी, तेलुगु में अनुवाद हुआ, जिनका उल्लेख कुछ इस तरह है:

प्रकाशित संग्रह: 

सिन्धी संग्रह: ग़म में भीगी ख़ुशी (ग़ज़ल-2007), उड़ जा पंछी (भजनावली-2007), आस की शम्अ (ग़ज़ल-2008), सिंध जी आऊँ जाई आह्याँ (कराची-2009), ग़ज़ल-(ग़ज़ल-2012), माँ कहिं जो बि नाहियाँ (कहानी-2016), सिजु लहण बइद (कहानी-2018), अम्मा चयो हो-(काव्य-2019) नज़ाक़त रिश्तन जी (कथा-2020), लफ्ज़ी लिबास (समलोचनाएँ-2020) 

हिन्दी संग्रह: चराग़े-दिल (ग़ज़ल-2007), दिल से दिल तक (ग़ज़ल-2008), लौ दर्दे-दिल की (ग़ज़ल-2010), भजन-महिमा (भजनावली-2012), ऐसा भी होता है (कहानी-2016), सहन-ए-दिल (ग़ज़ल-2017), गंगा निरंतर बहती रही (लघुकथा-2017), माँ ने कहा था (काव्य-2017), जंग जारी है (कहानी संग्रह-2018), क़लम के विविध रूप-(समीक्षाएँ-पुरुष-2018), जंग जारी है (कहानी-2019) जीवन के पहलू (प्रेरणात्मक पहलू-2019), परछाइयों का जंगल (कहानी संग्रह-2019), बहते पानी में दरारें-1-(संस्मरण-2019), त्रिवेणी (दोहा-हाइकु-मुक्तक-2020), समीक्षात्मक अनुभूतियाँ (सिन्धी अनूदित साहित्य पर विमर्श-2020), भाषाई संगम की इबारतें (अनूदित साहित्य पर विचार दृष्टि-2020), बात तेरी-मेरी (साक्षात्कार-2021) संवाद के मंच पर (व्यक्तिव-कृतित्व-2021), दरिया-ए-दिल (ग़ज़ल-2021), सागर के तट पर (संस्मरण-2-2021) कोई नारी मन से पूछे (लेख-आलेख-प्रेस), 

हिन्दी से सिन्धी अनुवाद: बारिश की दुआ (कहानी संग्रह-2012), अपनी धरती (कहानी संग्रह-2013), रूहानी राह जा पांधीअड़ा (काव्य-2014), बर्फ़ जी गरमाइश (लघुकथा-2014), आमने-सामने (हिन्दी-सिंधी काव्य अनुवाद-2016), आँख ये धन्य है (नरेंद्र मोदी काव्य-2017), चौथी कूट (वरियम कारा का कहानी संग्रह-प्रकाशन-साहित्य अकादमी-2018), 

सिन्धी से हिन्दी अनुवाद: मैं बड़ी हो गई (कहानी-2012) सिन्धी कहानियाँ (कहानी-2014), पंद्रह सिन्धी कहानियाँ (2014) सरहदों की कहानियाँ (कहानी-2015), अपने ही घर में (कहानी-2016), दर्द की एक गाथा (कहानी 2016), एक थका हुआ सच (अतिया दाऊद काव्य-2016), विभाजन की त्रासदी (कहानियाँ-2017), प्रान्त प्रान्त की कहानियाँ (Multilingual-कहानी-2018), कविता की पगडंडियाँ (सिंधी काव्य-2019), 

अन्य अनूदित प्रकाशित संग्रह:

  • Rumi Masnavi (अँग्रेज़ी से हिंदी-सिंधी अनुवाद-2022) 

  • The Ringing Radiance (Eng-Poetry-2021) 

  • After The Sunset (इंग्लिश कहानी संग्रह-राम दरयानी-2020) 

  • गुलशन कौर अन्य कहानियाँ (पंजाबी-जगदीश कुलरियन-2020) 

  • सफ़र-(अँग्रेज़ी काव्य का हिन्दी-सिंधी अनुवाद—ध्रुव् तनवाणी-2016) 

  • सिन्धी कथा (सिन्धी कहानी का मराठी अनुवाद-डॉ. विध्या केशव चिट्को-2016) 

  • The Journey (original-अँग्रेज़ी काव्य-2009) 

  • परछाइयों का जंगल (उर्दू कहानी–आमिर सिद्दिकी-प्रेस) 

  • और गंगा बहती रही (सिन्धी लघुकथा-अनुवाद-डॉ. गायत्री) 

अन्य कहानियाँ मराठी, पंजाबी, उर्दू, तेलुगु, तमिल, मलयालम, व् अँग्रेज़ी में अनूदित। 
शोध कार्य: कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से दो शागिर्द एम.फिल. संपन्न कर पाए हैं। एक पीएच.डी. के लिए क़दम आगे बढ़ा चुकी है। 

डॉ. संजीव कुमार: आप अपनी कौन सी रचना को सर्वश्रेष्ठ मानती हैं? और क्यों? 

देवी नागरानी: प्रिय रचना का क्या कहना! जैसे एक माँ का अपने हर बच्चे से प्यार व जुड़ाव होता है कुछ वैसे हीअपनी हर लिखी रचना के साथ एक तरह का मोह हो जाता है। बावजूद इसके मुझे वह रचना अधिक प्रिय है जिसमें देश की संस्कृति, संस्कार और भाषा से जुड़े भाव हो, जिसमें अपनी धरती की सौंधी महक हो। 

मैंने प्रवास में रहते हुए कुछ ऐसे गीत ग़ज़ल व लेख लिखे हैं जहाँ मेरे मन की भावनाएँ साफ़ ज़ाहिर करती हैं कि मैं जहाँ कहीं भी रहूँ, मेरा देश मेरे दिल में बसता है, कारण साफ़ है, देश से जुड़ी एक नहीं अनेक यादें बचपन से बड़े होने तक की दिल में बसी हैं। भाषा भाव की जड़ें देश की मिट्टी से अपना नाता पुख़्तगी से बनाये हुए हैं। 

और जैसे मैंने कहा ग़ज़ल मुझे अति प्रिय है पर उनमें से कुछ ग़ज़लें हिंदी व सिंधी में प्रवास में रहते हुए अपने वतन की सद्भावनाओं से पिरोई हैं, वे मुझे अधिक प्रिय हैं। अपनी मातृभाषा व् राष्ट्रभाषा को लेकर जो सौहार्द दिल में धड़कता है, उसकी सौंधी सौंधी सी ख़ुश्बू दिल में बसी हुई है। 

मेरा सिंधी संग्रह “सिंध जी माँ जाई आहियाँ” (मैं सिंध की पैदाइश हूँ) कराची में ‘सिन्धी अदबी अकादमी’ से 2009 में प्रकाशित हुआ, जिसके आग़ाज़ी पन्ने पर मेरी पहली लिखी हुई सिन्धी रचना ने स्थान पाया। वह भाव भाषा में लिखी रचना मुझे अति प्रिय है शायद वह सही शब्दों में मेरे हृदय की भावनाओं को अभिव्यक्त कर पाई है। इस संग्रह के बाद वहाँ के कुछ लेखकों ने मुझे अपनी समीक्षा तक अभिव्यक्तियों में ‘सिंध की बेटी’ कह कर संबोधित किया। सिंधी भाषा के ज्ञान विज्ञान के माहिर उस्ताद शब्बीर कुम्भार ने इसे अपनी आवाज़ में इस कविता को अपनी खलिश भरी आवाज़ में प्रस्तुत किया है जो इस लिंक पर सुनी जा सकती है: 

बोली मुंहिंजी सिन्धी आहे
सिन्ध जी आंउ जाई आहियाँ। 
लोली माऊ डिनी जा मूंखे
वर वर जेकर वेठी गायाँ। 
सिन्ध जी आंउ जाई आहियाँ। 

Sindhi is my language
। am the child of Sindh
। sing again and again
The lullaby that my mother sang
। am the child of Sindh

song

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