धूप का क़हर

15-05-2022

धूप का क़हर

गुड़िया गौतम (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मनुष्य पर ढा रही है क़हर धूप, 
सूख गए है सब नदी नाले कूप। 
 
पशु पक्षी भी हैं बहुत अब त्रस्त, 
न जाने कब होगी? ये बरसात। 
 
दाने पानी के लिए हैं पक्षी प्यासे, 
सब रखा करो छात में पानी प्यारे। 
 
भूख से है सब पशु पक्षी बेहाल, 
वर्षा आते ही सब हो जाते निहाल। 
 
थोड़ा सा करो दया पक्षियों पर, 
बेचारे ढूँढ़ रहें हैं नल में भी पानी। 
 
प्यास से न जाने कितनों ने जान, 
अपनी अब होगी? देखो गँवायी।  
 
कुछ तरस करो तुम है ये बेजुबान, 
न माँगे तुम से कुछ भी ये जान। 
 
बस मिल जाये एक दो बूँद पानी, 
तो बच जाएँगी जान हमारी। 

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