छोटे-मोटे
राम मूरत ‘राही’“तुम्हारी ज़रा-सी ग़लती की वजह से हमारे पड़ोसी प्रभाकर जी से सम्बन्ध ख़राब हो गये। इसमें मेरी भी ग़लती है, जो तुम्हारे उकसाये में आकर मैंने उनसे झगड़ा कर लिया था। अन्यथा आज हमें दस हज़ार रुपये वे उधार दे देते। अब किससे उधार माँगने जाऊँ, कौन देगा?” दीपक पत्नी पर ग़ुस्से से बरस पड़ा।
पत्नी चुपचाप एक अपराधी की तरह खड़ी थी।
तभी अपने घर के बाहर खड़े उनके पड़ोसी प्रभाकर ने दीपक की बातें सुन लीं। वे घर में गये और अलमारी में रखे रुपयों में से दस हज़ार रुपये निकाल कर दीपक के घर जाकर उन्हें देते हुए बोले, “ये रख लो। छोटे-मोटे झगड़े तो होते रहते हैं। उसकी चिंता मत करो।”
“लेकिन . . .?”
“लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। तुम मेरे छोटे भाई जैसे हो। क्या भाइयों के बीच झगड़े नहीं होते, और फिर वे एक नहीं होते क्या?”
प्रभाकर जी की सद्भावना देखकर दीपक और उसकी पत्नी की आँखें नम हो गईं।