छठवाँ तत्व

04-02-2019

उस दिन सतसंग में पंडित जी कह रहे थे - ’’क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा .. मनुष्य का शरीर पाँच तत्वों से बना होता है। यह शरीर नाशवान है। मृत्यु होने पर ये पाँचों तत्व अपने-अपने मूल में वापस समा जाते हैं।’’

मरहा राम भी सतसंग लाभ ले रहा था। उसकी अड़हा बुद्धि के अनुसार पंडित जी के इस कथन में उसे कुछ घांच-पाँच लगा। उसने कहा- ’’पंडित जी! हजारों साल पहले लिखी यह बात उस समय जरूर सत्य रही होगी। अब इसकी सत्यता पर मुझे संदेह होता है।’’

पंडित जी ने कहा - ’’हरे! हरे! घोर पाप! कैसा जमाना आ गया है। धर्मग्रंथों में लिखी बातों के ऊपर संदेह? ऐसी बातें कभी असत्य हो सकती हैं?’’

’’मैं भी तो यही कह रहा हूँ पंडित जी’’, मरहा राम ने कहा - ’’अब तत्वों की संख्या बढ़ गई होगी, वरना पाप कहाँ से पैदा होता?’’

’’अरे मूरख! पाप-पुण्य कब नहीं था। उस समय भी था अब भी है।’’

’’लेकिन भ्रष्टाचार और अनाचार तो नहीं रहे होंगे न?’’

’’मरहा राम! ये सब भी पहले थे, फरक केवल मात्रा का है। अब कम का जादा और जादा का कम हो गया है।’’

’’लेकिन पडित जी,’’ मरहा राम ने कहा - ’’लोग कहते हैं, आज का आदमी जैसा दिखता है, वैसा होता नहीं। और जैसा होता है, वैसा दिखता नहीं। मुझे लगता है, नहीं दिखने वाला यही तत्व पहले नहीं रहा होगा। नहीं दिखने वाला तत्व मतलब अदृश्य तत्व, डार्क मैटर। कहीं यही तो छठवाँ तत्व नहीं है।’’

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