चराग़ तो सभी जल रहे हैं

15-12-2021

चराग़ तो सभी जल रहे हैं

मुहम्मद आसिफ़ अली (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

नज़्म लिखूँ मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं
चैन से गुजर रही है ज़िन्दगी
ख़्वाब भी अच्छे पल रहे हैं
 
नज़्म लिखूँ मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं
दुनिया में कोई गम नहीं
हम भी ख़ुशियों में ढल रहे हैं
 
नज़्म लिखूँ मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं
हाथों ने कलम भी ठीक पकड़ी है
पाँव भी अच्छे चल रहे हैं। 
 
नज़्म लिखूँ मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं
जवानी में दम में मौज़ूद है
और बुढ़ापे में भी ढल रहे हैं। 

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