चराग़ तो सभी जल रहे हैं
मुहम्मद आसिफ़ अलीनज़्म लिखूँ मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं
चैन से गुजर रही है ज़िन्दगी
ख़्वाब भी अच्छे पल रहे हैं
नज़्म लिखूँ मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं
दुनिया में कोई गम नहीं
हम भी ख़ुशियों में ढल रहे हैं
नज़्म लिखूँ मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं
हाथों ने कलम भी ठीक पकड़ी है
पाँव भी अच्छे चल रहे हैं।
नज़्म लिखूँ मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं
जवानी में दम में मौज़ूद है
और बुढ़ापे में भी ढल रहे हैं।