भरी अंजुली

15-09-2022

भरी अंजुली

भव्य गोयल (अंक: 213, सितम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

सुबक सुबक कर नमकीन स्याहियाँ, देखो हाथों से कह रहीं हैं, 
कर क़तरा क़तरा कर बूँदों सी, देखो कितनी यादें बह रहीं हैं, 
समझो, ज़रा समझो इन्हें ज़माने वालो, ज़रा इनपर भी तरस खाओ, 
बात ज़रा सी कहने को, देखो तो अखियाँ क्या-क्या सह रहीं हैं . . . 
 
बूँद बूँद पर देखो ज़रा तो, कितनी मस्तियाँ लिखी हुईं हैं, 
कोई तो समझे क़तरे क़तरे पर, कितनी हस्तियाँ टिकी हुईं हैं, 
पाठ्यक्रम में विविध विविध के, पानी का मोल पढ़ाते हो, 
क्या जानते हो फिर भी कितनी, आज इसकी अंजुलियाँ बिकी हुईं हैं . . . 
 
भटकता फिरूँ तराज़ू ढूँढ़ता, कोई तो बतायें इनका तोल भी, 
भाषा क्या इनकी कोई ना जाने, कोई तो समझे इनका बोल भी, 
तकिए, रुमाल, पीछे छोड़ आया हूँ, भरी है अंजुलियाँ आँसू की, 
किस दर भटकूँ किस डर पूँछू, कोई तो बताये इनका मोल भी . . . 
 
अरे स्वर्ण से कम क़ीमत क्या इनकी, बस ये गले का हार नहीं, 
नुक़्स निकाल कर दिखाओ तो ज़रा, कि किस बूँद में प्यार नहीं, 
क्या कोई नहीं जो परवाह करे, क्या कोई नहीं भर अंजुली आँसू सहेजने वाला, 
ख़रीदने का तो ख़्याल ही छोड़़ो, क्या कोई मुफ़्त लेने को भी तैयार नहीं . . . 
 
कोई तो हो जो मुझको ना समझे, ना समझे भाग की पनौती सा, 
कोई तो हो जिसे मुझे हँसाना, लगे प्रतिदिन की चुनौती सा, 
भर अंजुली आँसू को मेरे, कोई तो ना जाने सिर्फ़ पानी का प्याला, 
कोई तो मोल समझे इनका, कोई समझे इन्हें भी मोती सा . . . 
 
सात समुंदर मैं चाहने वाला, ना ज़रूरत पूरे संसार की, 
नहीं टिकता ता-उम्र गर अभी, तो नहीं चाहिए शोखियाँ प्यार की, 
अकेलापन भी हुआ अकेला, ढूँढ़ता मोल भर अंजुली आँसू का, 
कोई मिले जो दे कांधा इनको, ज़रूरत बड़ी है, एक यार की . . .। 

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