बेटी

अर्चना लखोटिया (अंक: 200, मार्च प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

सावन में डाली का झूला है बेटी। 
उपवन में खिलता गुलाब है बेटी। 
उगते हुए सूर्य की लाली है बेटी। 
सन्ध्या में दिया बाती है बेटी। 
आसमाँ में टिमटिमाता तारा है बेटी। 
रसों में शृंगार सी होती हैं बेटी। 
अलंकारों में उपमा सी होती है बेटी। 
माता पिता की आन है बेटी। 
भाई की राखी का मान है बेटी। 
उदासी में उल्लास का संचार है बेटी। 
ग़म की हर दवा का उपचार है बेटी। 
बेटियों से ही घर की पहचान होती है। 
एक, दो नहीं ये तीन कुलों की आन होती है। 
धन्य है वह माता पिता 
जिनके घर में बेटियों का हुआ पदार्पण। 
बेटियों जितना भला कहाँ मिलता है समर्पण। 

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