बकवास करना सीखो 

01-06-2025

बकवास करना सीखो 

अख़तर अली (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

अगर आप ज़रा भी चर्चा में नहीं हैं और आपके अंदर ऐसी कोई योग्यता भी नहीं है जो आपको सुर्ख़ियों में ला सके तो आप बकवास कीजिये। बकवास करने वालों का ही भविष्य उज्जवल है। जो बका—वो पका, जो अटका—वो लटका। इस बात को इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि आपको पद, पैसा, पॉवर और पहचान चाहिये तो बकवास कीजिये। 

यह बकवास करने वालों का स्वर्णिम काल है। अगर आप पढ़े-लिखे हैं तो यह बात किसी को बताना नहीं। डिग्री जला दीजिये, पत्थर में लपेट कर कुँए में फेंक दीजिये। भूल कर भी बुद्धिमानी की बात मत करना। होशियारी दिखाओगे तो बेवुक़ूफ़ कह कर हकाल दिये जाओगे। अगर शालीनता छोड़ नहीं सकते, असभ्य हुआ नहीं जाता तो फिर आपके रहने की एक ही जगह है किसी बंकर में छिप जाइये। 

अगर आप आज की परिस्थिति में यह कहते हैं कि मूर्ख आदमी बकवास करता है तो मैं कहूँगा आप बकवास कर रहे हैं। पहले के ज़माने में अनपढ़ और मूर्ख लोग बकवास करते थे। अब पढ़े-लिखे और होशियार लोगों ने उनसे यह अधिकार हथिया लिया है। अब समझदार आदमी बकवास करता है और मूर्ख उसे गली-गली, घर-घर हर मस्तिष्क में पहुँचाता है। साहित्य और कला के क्षेत्र में काम करने वालों की ज़िन्दगी गुज़र जाती है लेकिन उनकी तरफ़ कोई ध्यान नहीं देता और बकवास करने वालों को तुरंत-फुरंत पुरस्कृत कर दिया जाता है। 

अब वह बात कोई बात नहीं और वह बयान कोई बयान नहीं जिसमें बकवास न हो। हम बकवास सुनने के आदि हो गये हैं। सीधी सच्ची बात हमको बकवास लगती है और बकवास बात सुन कर हमारे मुँह से तुरंत निकलता है—वाह क्या बात कही है। 

बकवास से बयान विवादित होता है। बयान को विवादित बनाने के कारख़ाने होते हैं। इन कारख़ानों में सोच समझ कर ऐसे बयान तैयार किये जाते हैं जिनके विवादित होने की गारंटी होती है। ये कंसेप्ट, भाषा, लहजा ही नहीं तैयार करते बल्कि उसे चर्चित करने के लिये इनका मीडिया के साथ क़रार भी होता है। 

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया पर हर बकवास का स्वागत है। यहाँ आपकी बकवास को थोड़ा और मांजा जायेगा। उसमें थोड़ी और चमक और धार पैदा की जायेगी। टीवी के स्क्रीन से निकलते ही आपकी बकवास वहाँ तक पहुँच जायेगी जहाँ तक रवि पहुँचे न कवि पहुँचे। 

पहले बम बना कर सार्वजनिक स्थानों पर फेंके जाते थे लेकिन बम से उतना नुक़्सान नहीं हो रहा था जितने की दरकार थी। बम से तो एक निश्चित स्थान और उसके निश्चित दायरे में ही तबाही होती थी। अलग-अलग स्थान पर बम फेंकने में समय की बहुत बर्बादी होती है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए व्यवस्था के इंजीनियरों ने बकवास बयानों का आविष्कार किया। उनकी मेहनत रंग लाई। आज एक बकवास बयान सैकड़ों बमों से ज़्यादा विनाशकारी साबित हो रहा है। इस उपलब्धि पर बकवास करने वाले लोग एक दूसरे को बधाई दे रहे है और जश्न मना रहे हैं। 

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