बड़े अच्छे लगते हैं
कल्पना 'ख़ूबसूरत ख़याल'मैंने शामें नहीं देखीं
सिर्फ सिंदूर देखा है
कभी किसी शाम
जब जलता सूरज
पानी में गिर बुझने लगे
तब तुम मुझे ले चलो
नदिया के किनारे जहाँ
सन्नाटा पसरा हो
सुनाई दे तो बस
तुम्हारी धड़कने मेरी साँसें
और वो पानी की आवाज़
मैं ज़ोर-ज़ोर से हँसूँ
इतनी ज़ोर से
कि शाखों पर बैठी
गौरैया उड़ जाएँ
और तुम मुझे
मेरा फ़ेवरेट
वो पुराना गाना सुनाओ
"बड़े अच्छे लगते है
ये धरती, ये नदिया
ये रैना और
तुम"
1 टिप्पणियाँ
-
बहुत बढ़िया