बदरा-बदरी लड़म-लड़ैया
डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल' (1)
बदरा-बदरी लड़म-लड़ैया।
जानै क्या होगा अब भैया।
नैना जोहते बाट हमारे,
कब बरसोगे भैया।
कब बरसोगे भैया राने,
अब तो बरसो भैया॥
(2)
इन दोनों ने अपने घर का
किया है कैसा हाल सखे।
बकबक झकझक करते रहते,
सुबह-शाम बवाल सखे।
बिना बात की बात की होती
अक्सर लड़म-लड़ैया॥
कब बरसोगे भैया राने,
अब तो बरसो भैया॥
(3)
बड़बड़-बड़बड़,चड़बड़-चड़बड़
करते रहवैं दोनों।
एक बूँद ना जल बरसावैं
गरजै - बरजै दोनों।
इन दोनों मैं करवा दो जी
समझौता कोई भैया ॥
कब बरसोगे भैया राने,
अब तो बरसो भैया॥
(4)
इन दोनों में जानै कबलौ
होवैगा अब मेल नहीं।
बरसावै कोई इकला पानी,
इनके बस का खेल नहीं।
जानै कबलौ रुठ-मनव्वल,
चलैगी तुमरी भैया॥
कब बरसोगे भैया राने,
अब तो बरसो भैया॥
(5)
गड़-गड़ करती बिजली आकै
एक दिन तुमसै बोली।
अब तो सरम करो कुछ थोड़ी,
दुनिया कितनी रोली।
अरे बूँद के मोती तड़-तड़,
बरसादो रे भैया॥
कब बरसोगे भैया राने,
अब तो बरसो भैया॥
(6)
रूसा-रासी बंद करो जी,
दोनों हँसो हँसाओ।
धरती मैया बिलखै प्यासी,
इसकी प्यास बुझाओ।
आँख मैं कजरा डालो ऐसा,
धूप को कर दो छैया॥
कब बरसोगे भैया राने,
अब तो बरसो भैया॥
(7)
माथे बिंदिया, माँग सिंदूरी
करकै चलो बदरिया।
पीछै-पीछै मीठे जल की
बदरा भरे गगरिया।
उमड़-घुमड़ कै दोनों बरसो
अब तो राम - रमैया॥
अब तो बरसो भैया राने,
अब तो बरसो भैया॥