बचाकर रखिए अपनी नाक
विवेक रंजन श्रीवास्तव
लेखक के रूप में ज्यों ही थोड़ी सी पहचान बनी, मेरे पास विवाह या जन्मदिन के अवसर पर कविता लिखने की फ़रमाइशें आने लगी। कार्यालय में सेवा निवृति या साहित्यिक सम्मान समारोह के अवसरों पर अभिनंदन पत्र लिखने का फ़रमाइशी गद्य लेखन भी जब-तब होता रहा। जब कभी किन्हीं संपादकों के आग्रह पर अवसर विशेष के लिए किसी व्यंग्य अथवा आलेख लिखने को कहा जाता तो मेरी लेखक वाली नाक थोड़ी ऊँची हो जाती।
ललित निबंध से मेरा नाता हिंदी की मैट्रिक की तैयारी में नोट्स बनाने का रहा है। कभी-जभी ललित निबंध लिखने के प्रयास भी हुए किन्तु मूल विधा के रूप में व्यंग्य, समीक्षा और कविता ही ललित निबंध पर हावी ही रही।
ऊर्जावान साहित्य सेवी मित्र, संपादक प्रकाशक जीतेन्द्र जीतांशु जी जयपुर के किसी साहित्य समारोह में थे। उनका फोन आया कि मुझे ललित निबंध लिखना चाहिए, कम लिखे जा रहे हैं। चर्चा में वे बोले ‘नाक’ पर लिखिए। मुझे बहुत पहले पढ़ा हुआ हरिशंकर परसाई का व्यंग्य ‘दो नाक वाले लोग’ तथा बालकृष्ण भट्ट का ललित निबंध ‘नाक’ की याद आ गई।
व्यंग्य की ही तरह ललित निबंध की विधा के रूप में स्वीकारोक्ति भी पुरानी नहीं है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रतापनारायण मिश्र, सरदार पूर्ण सिंह, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, बालमुकुन्द गुप्त, पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी, हजारी प्रसाद द्विवेदी, अज्ञेय, कुबेर नाथ राय, विद्या निवास मिश्र, आदि आदि महान लेखकों के ललित निबंध हिंदी साहित्य की धरोहर हैं।
जब निबंध में लालित्य, भावात्मक, आत्मकथात्मक, रोचक संस्मरणात्मक, अभिव्यक्ति हो और उसमें लालित्य तथा रस प्रवीणता हो तो उसे ललित निबंध माना जाता है। ललित निबंध के विषय अपेक्षाकृत भावात्मक और शाश्वत प्रकृति के होते हैं।
इस भूमिका के साथ ललित निबंध के कौशल को सूँघते हुए, अपनी नाक पर रखे चश्में को साफ़ कर, नथुनों से दीर्घ श्वास लेकर ‘नाक’ पर लिख रहा हूँ।
नाक जाने कितनी बार हमारी बातचीत का विषय बनी रहती है, कभी स्वास्थ्य को लेकर तो कभी हास्य का, कभी व्यंग्य का, कभी गर्व का, तो कभी अपमान का विषय ‘नाक’ केंद्रित हो ही जाता है।
चेहरे का यह छोटा सा अवयव आकार में भले ही छोटा होता है, पर उसकी महत्ता उतनी ही विराट है। यह हमारी आँखों के नीचे, मुँह के ऊपर सुशोभित है जैसे कि किसी मुकुट पर मणि हो।
चेहरे के हाव भाव के संप्रेषण में, भाव भंगिमा के निर्धारण में नाक की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है। नाक-नक़्श ही चेहरे को आकर्षक या क्रूर बनाता है। ईरानी, कश्मीरी तीखी नुकीली नाक सौंदर्य की मानक मानी जाती है। मोटी भद्दी चपटी नाक देख कर सहज ही हास्य भाव जाग उठता है। यद्यपि इस तरह के प्रकृति दत्त मुद्दों पर हास्य करना अशिष्टता है। लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटना ही राम रावण युद्ध का कारण बना था।
साहित्य में नाक, केवल सौंदर्य या शारीरिक आकृति तक सीमित नहीं है। रचनाकारों ने नाक को सम्मान का प्रतीक बना दिया है। मुहावरों और लोकोक्तियों में नाक को कई व्यंजना अर्थ दिए गए हैं। नाक में दम करना अर्थात् किसी को बहुत परेशान करना, नाक भौं सिकुड़ना मतलब घृणा करना, नाक रख लेना यानी इज़्ज़त बचा लेना, नाक का बाल होना अर्थात् बहुत प्यारा होना, नाक में नकेल डालना मतलब वश में करना, नाक पर सुपारी तोड़ना यानी बहुत परेशान करना, नाक पर ग़ुस्सा होना यानी बहुत नाराज़ होना, बड़ी नाक वाला होना का प्रयोग इज़्ज़तदार होने के लिए किया जाता है। तो नाक फुलाना या घमंड करना या किसी को अनदेखा करना होता है। नाक केवल नाक नहीं, आत्मगौरव की प्रतीक है। हम नाक के लिए सर्वाधिक प्रिय साथी तक को कोस सकते हैं, पड़ोसी से युद्ध कर सकते हैं।
अच्छे रिश्ते जोड़कर या कोई सफल आयोजन भव्यता से संपन्न करने पर लोगों की नाक ऊँची हो जाती है। तो दूसरी ओर परीक्षा में बच्चों के अंक कम क्या आ जाएँ माता पिता की नाक ही कट जाती है।
नाक को हमने शाब्दिक और सांस्कृतिक दोनों ही स्तरों पर इतना बड़ा बना दिया है कि कभी-कभी स्वयं नाक भी सोचती होगी मैं तो बस साँस लेने के लिए बनाई गई हूँ, पर मुझे समाज ने इज़्ज़त का गहना बना दिया गया है। सम्मान का सारा बोझ निरीह नासिका पर लदा हुआ है।
नाक से संवेदनाएँ जुड़ी हैं गंध, ग्रीवा, ग़ुरूर। बचपन में माँ के आँचल में हल्दी और मसाले की मिली-जुली गंध आती थी, तो उस महक में ही जैसे पूरा संसार सुरक्षित लगता था। पहली बार किसी चिट्ठी से इत्र की गंध आई, तो नाक ने ही बताया कि प्रेम का रंग क्या होता है। और पहली बार जब किसी का झूठ पकड़ा, तो इस नाक ने छठी इंद्रिय के माध्यम से चेताया कि कुछ तो गड़बड़ है।
सर्दी हो जाए और नाक बंद हो तो जो बेचैनी होती है उसे भुक्तभोगी ही जानता है। नोज़ल स्प्रे और सर्दी की ‘ओवर दी काउंटर’ औषधीय बाज़ार, तथा अनुलोम विलोम का सारा योग इसी नाक पर ही निर्भर है। नाक केवल गंध नहीं पहचानती, यह परिस्थिति भी भाँप जाती है।
किसी सभा में बैठे हों, और कोई बात आपके विरोध में हो, तो आप नाक फुला सकते हैं, तान सकते हैं, सिकोड़ सकते हैं, और यह सब बिना बोले हो जाता है। नाक की भाषा के मौन में मुखर, सरल संकेत निहित होते हैं। बॉडी लेंगुएज रीड करने वाले मनोविज्ञानी नाक से बहुत कुछ पढ़ लेते हैं।
नाक का हास्य पक्ष भी प्रबल होता है। परीक्षा के समय जब किसी छात्र को कुछ याद नहीं आता, तो वह अंगुली से नाक खुजाने लगता है, मानो ज्ञान वहीं कहीं छिपा हो। डॉक्टर के लिए वह प्रक्रिया एलर्जी साइन होती है।
फ़िल्मी कलाकार और मॉडल्स लाखों का व्यय कर नाक कस्टमाइज़ करवा रहे है। नाक मर्यादा की परिचायक थी। नथ उतारने की रस्म विवाह संबंधों का हिस्सा था। फोटो शॉप मोबाइल युग में अब सुंदर नाक फोटो फ़िल्टर ऐप में समा चुकी है। और अपनी पसंद की नाक आप अपनी सेल्फ़ी पर अधिरोपित कर सकते हैं।
नाक ने समय के साथ तरह-तरह की भूमिका निभाई है। कभी यह कवियों की उपमा बनी, तो कभी ग़ज़ल का क़ाफ़िया। कभी आँसू के साथ सिसकी, तो कभी बदबू का सामना कर इसने साँस रोक कर भागने पर मजबूर किया। लोक संस्कृति में फेरों के बाद सासू माँ दूल्हे की नाक पकड़ कर परिहास करती हैं। तो उम्र के साथ नाक ही चश्में को संबल देकर आँखों की मदद करती है।
सर्कस में जोकर की गोल मटोल रंगीन नाक ही मनोरंजन सुनिश्चित करती है। प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की तीखी लंबी नाक पर रोचक राजनैतिक कार्टून बनाया करते थे, लोग अख़बार में सबसे पहले वही देखा करते थे।
चेहरे पर श्वसन तंत्र की ब्रांड एंबेसडर नाक ही होती है। करोना काल में वह भयग्रस्त समय भी इस पीढ़ी ने जिया है जब सबको चिंता होती थी कि जाने कब कौन वेंटिलेटर पर आ जाए और नाक पर ऑक्सीजन मास्क का मोहताज बन जाए। वायुयान में विपदा के क्षणों में नाक को, सीट के ऊपर लटके ऑक्सीजन मास्क का ही आसरा होता है। नाक गंध की गुप्तचर है, सम्मान की प्रहरी है और स्वाभिमान की संरक्षिका है। तो अपनी नाक बचाकर रखिए।