“वाह भई, क़लम के सिपाही भी मौजूद हैं,” पीडब्‍ल्‍यूडी के चीफ़ इंजीनियर साहब ने पत्रकार पर चुटकी ली। 

“काहे के सिपाही। क़लम तो आप सब के हाथ में है, जैसे चाहें घुमायें,” पत्रकार सबकी तरफ़ देखता हुआ बोला। 

“पर पत्रकार भाई, आजकल तो जलवा आपकी ही क़लम का है। आपकी क़लम चलते ही, सब घूम जाते हैं। फिर तो उन्हें ऊँच-नीच कुछ नहीं समझ आता है। आपकी क़लम का तोड़ खोजने के लिए जो बन पड़ता है, हम सब वो कर गुज़रते हैं,” डॉक्टर साहब व्यंग्य करते हुए बोल उठे। 

“सही कह रहे हो आप सब। वैसे हम सब एक ही तालाब के मगरमच्‍छ हैं। एक-दूजे का ख़्याल रखें तो अच्छा होगा। वरना लोग लाठी-डंडे लेकर खोपड़ी फोड़ने पर आमदा हो जाते हैं,” लेखपाल ने बात आगे बढ़ाई। 

“पर ये ताक़तवर क़लम, हम तक नहीं पहुँच पाती है,” ठहाका मारते हुए बैंक मैनेजर बोला। 

“क्यों? आप कोई दूध के धुले तो हैं नहीं,” गाँव का प्रधान बोला। 

“अरे कौन मूर्ख कहता है हम दूध के धुले हैं। पर काम ऐसा है जल्दी किसी को समझ नहीं आता है हमरा खेल,” फिर ज़ोर का ठहाका ऐसे भरा जैसे इसका दम्भ था उन्हें। 

सारी नालियाँ जैसे बड़े परनाले से मिलती हैं, वैसे ही विधायक महोदय के आते ही, सब उनसे मिलने उनके नज़दीक जा पहुँचे। 

“नेता जी मेरे कॉलेज को मान्यता दिलवा दीजिये, बड़ी मेहरबानी होगी आपकी,” कॉलेज संचालक विनती करते हुए बोला। 

“बिल्कुल, कल आ जाइये हमारे आवास पर। मिल बैठकर बात करतें हैं,” विधायक जी बोले। 

“क्यों ठेकेदार साहब, आप काहे छुप रहे हैं। अरे मियाँ, यह कैसा पुल बनवाया, चार दिन भी न टिक सका। इतनी कम क़ीमत में तो मैंने तुम्हारा टेंडर पास करवा दिया था, फिर भी तुमने तो कुछ ज़्यादा ही . . .”

“नेता जी आगे से ख़्याल रखूँगा। ग़लती हो गयी, माफ़ करियेगा,” हाथ जोड़ते हुए ठेकेदार बोला। 

विधायक जी ठेकेदार को छोड़, दूसरी तरफ़ मुख़ातिब हुए, “अरे एसएसपी साहब आप भी थोड़ा। सुन रहें हैं सरेआम खेल खेल रहे हैं। आप हमारा ध्यान रखेंगे, तो ही तो हम आपका रख पाएँगे,” विधायक साहब कान के पास बोले। 

“जी सर, पर इस दंगे की तलवार से, मेरा सिर कटने से बचा लीजिए। दामन पर दाग़ नहीं लगाना चाहता। आगे से मैं आपका पूरा ख़्याल रखूँगा,” साथ में डीएम साहब भी हाथ जोड़ खड़े थे। 

सुनकर नेता जी मुस्कुरा उठे। 

सारे लोगों से मिलने के पश्चात उनके चेहरे की चमक बढ़ गई थी। दो साल पहले तक, जो अपनी छठी कक्षा में फ़ेल होने का अफ़सोस करता था। आज अपने आगे-पीछे बड़े-बड़े पदासीन को हाथ बाँधे घूमते देख, गर्व से फूला नहीं समा रहा था। 

तभी सभा कक्ष के दरवाज़े पर खड़ा हुआ एक नौजवान सबसे मुख़ातिब हुआ। उसने विनम्रता से कहा, “और मैं एक किसान परिवार का बेटा हूँ। जिसकी पढ़ाई करवाते-करवाते पिता क़र्ज़े से दबकर आत्‍महत्‍या कर बैठे। परिवार का पेट भरने के लिए मुझे चपरासी की नौकरी करनी पड़ रही है। पर मुझे आज समझ आया कि मेरे पिता की आत्‍महत्‍या और मेरे परिवार को इस स्थिति में लाने में आप सबका हाथ है। आपका कच्‍चा चिठ्ठा अब मेरे पास है।”

बाज़ी पलट चुकी थी! विधायक से लेकर ठेकेदार तक, सब एक-दूसरे का मुँह ताक रहे थे। 

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