बापू 

डॉ. विजयानन्द (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

हम सबके थे प्यारे बापू! 
लगते कितने न्यारे बापू। 
 
आधी धोती पहने रहते, 
चाहे जाड़ा हो या गर्मी। 
देश के लिए जीते मरते, 
कुछ लोग भले करते बेशर्मी॥
 
कहते जब तक भारत भर की, 
तन न ढंक लेती है नारी। 
तब तक आधी धोती से ही, 
अपना तन ढंक लेगा गाँधी॥
 
आश्रम अपना बना अनोखा, 
बकरी भी पाला करते थे। 
अपने बल पर जीते मरते, 
अपना काम स्वयं करते थे॥
 
रहे जेल में कई वर्ष तक, 
पढ़ करके ख़ुद को समझाया। 
चिंतन करके नया नया कुछ, 
पुस्तक लिख करके बतलाया॥
 
ग़ज़ब आपकी आत्मकथा है, 
पढ़ते-पढ़ते मन भर आता। 
त्याग और बलिदान आपका, 
सहज समझ न सबके आता॥
 
हिंद स्वराज आपका चिंतन, 
भारत के दर्शन का दर्शन। 
बौद्धिकजन के मन को भाता, 
जैसे कृष्ण का चक्र सुदर्शन॥
 
गोलमेज़ सम्मेलन तक में, 
जाकर अपनी धाक जमाई। 
इंग्लैंड भी थर-थर काँपा, 
महाराज को आई जम्हाई॥
 
लोग आपके साथ हो लिए, 
तब दिग्दिगंत में गूँजे बापू। 
हम सबके थे प्यारे बापू, 
लगते कितने न्यारे बापू॥

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