बाँस बरोबर आया पानी
डॉ. राजेन्द्र गौतमबादल आए इंद्रधनुष ले
टूट पड़ी सेना अंबर से
हुए पराजित गाँव।
बाँस बरोबर आया पानी
बहती जाती छप्पर-छानी
फिर भी मस्ती में ’रजधानी‘
यों तो उत्सव-संध्याओं में
चर्चे इनके ही होते हैं
पर आशंकित गाँव।
ढाणी, टिब्बों फोग-वनों में
कैसा छाया ’सोग‘ मनों में
भय का फैला रोग जनों में
बिजली कोड़े बरसाती है
खाल उधेड़ी इसने तन की
थर्-थर् कंपित गाँव।
किधर गया रलदू का कुनबा
बिखर गया हरदू का कुनबा
बदलू का भी डूबा कुनबा
बोल लावणी के कजली के
सब गर्जन-तर्जन में डूबे
छितरा जित-तित गाँव।
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