और, रात भर,
आती रही,
पुराने माँस की बू।
और, वो घोलता रहा,
प्याले में कुछ और,
हवस के टुकड़े।
और मसलती रही,
बदन की पटरियों
के बीच,
टिमटिमाते अरमानों
की मुरझाई कलियाँ।
और,
कुछ उगने की कोशिश करेगा,
कोख के कुछ और
बुलबुले फूट जाएँगे।
औ कुछ दफन
हो जाएगा,
इसकी मिट्टी में।