अश्वेत बालिका 

15-10-2021

अश्वेत बालिका 

बृजेश सिंह (अंक: 191, अक्टूबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

नाइजीरिया की कवियत्री न्गोजी ओलिविया ओसुओहा ‘Ngozi Olivia Osuoha’ की कविता ’Black Child’  को हिंदी भाषा में ‘अश्वेत बालिका’ शीर्षक से बृजेश सिंह द्वारा अनूदित किया गया है ।

 

 कहते हैं अश्वेत तुम्हें, मानो वो हों स्वयं अवर्ण 
भद्देपन को चस्पा कर तुमसे, 
अवरोधक हैं तुम्हारी अग्रसरता के,
वो बना के तुम्हें स्वेच्छाचारी, 
ढकेलते पीछे की ओर   
अश्वेत किशोरी, दुनिया है इतनी विशाल, 
फिर भी तुम रहना चाहती हो जंगली!
 
समुद्र डुबाना चाहता है तुम्हें, 
इस वास्ते मछली ना बनो,   
क्योंकि मछली है भक्ष्य और मुफ़ीद 
बल्कि ज्वार, धारा और तूफ़ान बनो 
मत्स्यकन्या बन राज करो समुद्र पर!
 
अश्वेत किशोरी, अग्नि करना चाहती है भस्म तुम्हें 
तुम उसके लिए कोयला मत बनो वो तो है दहनशील,
बल्कि ज्वाला, उसकी गरमाहट बनो   
मत बनो ज्वलनशील!
 
तुम्हें उखाड़ना चाहती हैं हवायें 
पृथ्वी की मानिंद बनो; विशाल और शक्तिशाली!
 
विश्व को पसंद नहीं तुम्हारी चमड़ी 
वो फेंक सकती है तुम्हें कूड़ेदान में 
बस एक नन्हें से टिन की चाहत में, 
पीते हैं सबसे तेज़ जिन 
और पहचान दी तुम्हें पापी की, 
यदि उन्हें इसमें लगती है जीत  
तो तुम्हें सुई वेध; कर देंगे बेअसर।
 
अश्वेत बालिके, सोना नहीं हो तुम 
कि कोई भी तुम्हें बेंच दे,
यद्यपि तुम रहती हो झोपड़ों में 
तब भी बन सकती हो तुम सर्वश्रेष्ठ। 
कभी भी नहीं हो तुम निकृष्टतम 
कि कोई भी; तुम्हारी खोपड़ी फोड़े!
 
अश्वेत बालिके, तुम नहीं हो वानर 
लगी ना रहो गधे की तरह  
यद्यपि तुम रहती हो गुफा में 
पर नहीं हो गुलाम,
और तुम कभी ना बनना परजीवी 
हालाँकि वो लेते रहते हैं तुम्हारा इम्तिहान।
 
तुम्हारा स्तन्य है मधुर, मधु के वनस्वत 
कोई दौलत से इसे ख़रीद न ले,
तुम्हारी गोलाइयाँ हैं मज़बूत शिलाओं से  
किसी को भी इन्हें तोड़कर नष्ट ना करने दें 
और मत करो पिंजरे में ताले से क़ैद, 
क्योंकि वहीं पर है तुम्हारा जीवन!
 
अश्वेत किशोरी, विश्व है तमाच्छादित 
फिर भी तुम छोड़ सकती हो अपनी छाप!
हाँ, तुम्हारी रंगत है अश्वेत  
पर प्रकृति की तुममें नहीं कोई कमी!
 
तुम्हारी रंगत है सुंदर और अनोखी  
इतनी कि इन्द्रधनुष भी नहीं इतना रंगीन,
अश्वेत बालिके, अपने कंधे ऊँचे कर बढ़ चलो  
क्योंकि तुमसे बड़ा नहीं; कोई भी मानव! 

1 टिप्पणियाँ

  • 14 Oct, 2021 07:23 PM

    अति उत्तम अनुवाद, बृजेश। हिंदी रूपांतरण से ही बहुसंख्यक हिंदी भाषी लोगों को इतनी सार्थक एवं महत्वपूर्ण कविता पढ़ने का अवसर मिलना संभव हुआ है। साधुवाद।

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