अनुल्लिखित

03-05-2012

तुम्हे समर्पित मन वीणा के 
आज अनुल्लिखित मेरे राग।
नहीं विभूषित हुआ कभी जो 
वह तेरा मेरा अनुराग।


रहा विवादित सदा विश्व में 
अनुकांक्षित मेरा वह भाग 
अनुनादित हो लौट पड़ी सब 
अपने हिय की करुणा नाद।


भाव विनिर्मित था वह अपना 
एक काल्पनिक सा संसार।
जो अनुपालक्षित हो न पाया 
विफल हुआ सब मेरा त्याग।


अनुमानित था मम जीवन का 
बीहड़ पथ संकट की बात।
रहा विकंपित मौन भाव से 
निरख निरख जग का परित्याग।


सोचा तुमको मौन भाव से 
आज सुनाऊँगा वह राग।
रहा विकल्पित सदा सदा ही 
उच्छ्वासों का अपना स्वांग।


कभी तन्त्र न मिल पाये तो 
कभी वाद्य करता अट्टहास।
अनुमोदित था प्रतिपादित था 
फिर क्यूँ टूट गया विश्वास।


मन निरीह सा लगा दौड़ने 
लेकर एक अनबुझी प्यास।
निष्कासित कर अपने ही को 
बैठ गया फिर मौन उदास।


ऐसा अनुभव हुआ कि जैसे 
सभी विमर्षित थी वह बात।
समय सदा सिखलाता सबको 
सत्य असत्य सुनो सब जाग।

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