अँधेरों के सफ़र में उजाले की किरन: ‘अँधेरों का सफ़र’

15-05-2025

अँधेरों के सफ़र में उजाले की किरन: ‘अँधेरों का सफ़र’

तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

समीक्षित पुस्तक: अँधेरों का सफ़र (साझा हाइकु संकलन)
संपादक: डॉ. सुरंगमा यादव
प्रकाशक: अयन प्रकाशन,नई दिल्ली,
प्रकाशन वर्ष: 2025
ISBN: 978-93-6423-788-8
मूल्य: ₹320/-
पृष्ठ-112,
भूमिका: रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
संपादकीय/आलेख: डॉ. सुरंगमा यादव

डॉ. सुरंगमा यादव हाइकु के क्षेत्र में सुपरिचित हैं। इनके ‘यादों के पंछी’, ‘भाव-प्रकोष्ठ’ और ‘गाएगी सदी’ ये तीन हाइकु संग्रह प्रकाशित हैं। इनके कुछ हिन्दी हाइकु मराठी अनुवाद के साथ ‘नीड़ निहारे पंछी’ नाम से जल्द ही प्रकाशित होने वाले हैं। इन हाइकु का मराठी अनुवाद मैंने किया है। इनको ‘भाव-प्रकोष्ठ’ संग्रह के लिए राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान उ.प्र. का ‘दिनकर पुरस्कार’ जो एक लाख रुपये का है, प्राप्त हुआ है प्रसन्नता की बात है कि इनका हाइकु सार्वजनिक शिक्षा विभाग, केरल सरकार द्वारा पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है। कृष्णा वर्मा जी के साथ इन्होंने ‘सप्तरंग’ हाइकु संग्रह संपादित किया है, और अब वर्ष 2025 में ‘अँधेरों का सफ़र’ हाइकु संग्रह स्वतंत्र रूप से संपादित किया है। आइए, इस संग्रह के बारे में हम कुछ विस्तार से जान लेते हैं।

‘अँधेरों का सफ़र’ संग्रह में वृद्धावस्था पर केन्द्रित हाइकु बत्तीस हाइकुकारों के लिखे हुए हैं। इस संग्रह के उद्देश्य के बारे में सम्पादक डॉ. सुरंगमा यादव कहती हैं, “सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रकार के सामाजिक बदलाव साहित्य को प्रभावित करते हैं तथा साहित्य पर अपनी छाप छोड़ते हैं। आधुनिकता के मोह में डूबा युवा पारंपरिक जीवन मूल्यों, आस्था तथा रीति-रिवाज़ों आदि के प्रति उदासीन बन रहा है। वृद्धों को निष्प्रयोज्य सामग्री समझकर घर के किसी कोने तक सीमित कर दिया जा रहा है। अधिकतर वृद्ध उपेक्षा और एकाकीपन का शिकार हो रहे हैं। वृद्धाश्रमों की बढ़त हो रही है। हिन्दी हाइकु ‘वृद्ध विमर्श’ के रूप में वृद्धों की समस्याओं को गम्भीरता से उठा रहा है౹ हमें वृद्धों के मान-सम्मान तथा सुरक्षा को लेकर ज़िम्मेदार बनना होगा౹।” इस विषय पर संभवतः ये प्रथम संग्रह है।

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी इस संग्रह के अभिप्राय स्वरूप कहते हैं, “जवानी बीत जाने पर जब व्यक्ति अपने कार्य-क्षेत्र से विरत हो जाता है, तो वह एक भीड़ से निकलकर, नितान्त अकेलेपन का हिस्सा बन जाता है। उस अकेलेपन को तोड़ने के लिए, ख़ालीपन को भरने के लिए, कोई न कोई काम पास में होना चाहिए या किसी रुचिकर कार्य के प्रति अभिरुचि होनी चाहिए। अभिरुचि-शून्य व्यक्ति का बुढ़ापा कठिन होता है। . . . दवाई से बीमारी का इलाज हो सकता है; पर मन का एकान्त दूर करने की औषध केवल आत्मीयता और अपनेपन से पगा संवाद ही सहायक हो सकता है। अकेलापन और अवसाद बहुत-सी बीमारियों के जन्मदाता हैं।” बुज़ुर्गों को अपनों का सान्निध्य और सामीप्य चाहिए।

अब हम इस संग्रह के हाइकुओं के बारे में जानकारी लेंगे। वृद्धावस्था आने के बाद किन किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, इसका चित्र स्पष्ट करने वाले कुछ हाइकु देखिए:

हारी है जरा/शिकायतों का घर/दर्द व डर (डॉ. सुधा गुप्ता)
वृद्ध अवस्था/ऊपर दिखे शांत/भीतर आग (सुदर्शन रत्नाकर)
दवा की भीड़/वृद्ध मन अकेला/टूटता नीड़ (डॉ. जेन्नी शबनम)
बुढ़ापा आया/कितने समझौते/संग ले आया (डॉ. सुरंगमा यादव)
झुर्रियाँ उगीं/गवाह संघर्ष की/जर्जर देह (डॉ. कविता भट्ट)
छूटने लगीं/सारी ही ज्ञानेन्द्रियाँ/साँस न छूटे (डॉ. पूर्वा शर्मा)
कश्ती पुरानी/कोई नहीं है माझी/धारा तूफ़ानी (रश्मि विभा त्रिपाठी)
रहूँ उदास/चाह नहीं जीने की/बच्चे न पास (सविता अग्रवाल ‘सवि’)

यह वृद्धावस्था सबको आने वाली है। कोई भी जीव इस अवस्था से छुटकारा नहीं पा सकता, इसलिए जिस भी अवस्था में हम जी रहे हैं, उस अवस्था को यानी वर्तमान को स्वीकार कर जीवन का मुक्त आनंद लेना चाहिए। सुख-दुःख जीवन के दो पहलू हैं, यह बदलते रहते हैं, लेकिन हम तो वही हैं! हम क्यों बदलें? हवा से उठने वाली और थमने वाली इन लहरों में हम क्यों बहें? वर्तमान को अपना मान हमें मान से जीना हैं। हर हाल में ख़ुश रहना है। आख़िर सुख और दुःख अपनी कल्पना का खेल ही तो है? वृद्धावस्था में भी ख़ुशी दर्शाते यह हाइकु देखिए:

अकेला कहाँ/जब बीसों गौरैया/आ बैठी यहाँ (रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’)
बूढ़े हो गए/ज्यों-ज्यों बढ़ती छाया/तजुर्बे नये (डॉ. कुँवर दिनेश सिंह)
साँझ के संग/नन्ही भोर चलती/दादी और पोती (कमला निखुर्पा)
दादा के कँधे/पोते की किलकारी/सुख से यारी (डॉ. शिवजी श्रीवास्तव)
बुज़ुर्ग छाँव/आये जो भी विपदा/ ढाँपे आँचल (भावना सक्सेना)
बड़ी बेफ़िक्री/अब रोज़ ही होती/बाग़ की सैर (डॉ. पूर्वा शर्मा)
हँसते वृद्ध/परिवार का साथ/उम्र लापता (डॉ. उपमा शर्मा)
ख़ुशी बढ़ाए/हमउम्र लोगों की/हँसी ठिठोली (मंजु मिश्र)

परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है, हम इसे बदल नहीं सकते। बदली परिस्थितियों में ही हमें रास्ता निकालना है। अपना अहंकार त्यागकर निर्मल मन से हर स्थिति को हम पार कर सकते हैं। ‘हम जिएँ, भरपूर जिएँ, लेकिन लालसा के पीछे न भागें’। वृद्धावस्था का दुःख-दर्द कितना भी छुपायें, छुप नहीं सकता। वृद्धावस्था में किन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है, देखिए इन हाइकु में:

बोए सपने/ख़ुश रंग फूलों के/उगे कैक्ट्स (डॉ. सुधा गुप्ता)
जीवन संध्या/झरे हैं सब पात/जर्जर गात (सुदर्शन रत्नाकर)
ढूँढ़ते साथ/कँपकँपाते हुए/बूढ़ों के हाथ (कुँवर दिनेश सिंह)
जमने लगी/उम्र की पहाड़ी पे/रिश्तों की बर्फ़ (कमला निखुर्पा)
वृद्ध जीवन/अनुभव की आँखें/रखते मूँदे (डॉ. जेन्नी शबनम)
बुक-शेल्फ़ के/हाइकु-संकलन/कबाड़ी घर (ऋता शेखर ‘मधु’)
चौथा पहर/अँधेरों का सफ़र/जाएँ किधर (डॉ. सुरंगमा यादव)
हैं निराधार/जग हुआ जंजाल/थे मालामाल (डॉ. कविता भट्ट)
बूढ़े नयन/खोजते अपनों को/भरे घर में (डॉ. आशा पाण्डेय)
दवा के अस्त्र/मौत का चक्रव्यूह/हाँफती श्वास (अनिता मंडा)
वक़्त का फ़र्क़/भोर का अख़बार/शाम को व्यर्थ (दिनेश चन्द्र पाण्डेय)
उम्र गुज़ारी/पाई-पाई जो जोड़ी/बाँट दी सारी (शशि पाधा)

यह अवस्था ही ऐसी है, जो काया को आश्रित कर देती है। मनुष्य कितना भी अमीर हो, देह को पुनश्च बलवान नहीं कर सकता। जीवन यापन करने के लिए उन्हें दूसरों का सहारा लेना ही पड़ता है। जब शरीर साथ नहीं देता, तो मन अपनों के साथ के लिए और भी व्याकुल होता है, ऐसी ही कुछ निरीहता इन हाइकुओं में है:

नीड़ बेकार/शावक उड़ गए/पंख पसार (डॉ. सुधा गुप्ता)
बुढ़ियाँ रोई/रुकती नहीं खाँसी/सुने न कोई (सुदर्शन रत्नाकर)
धूप में खाट/देख रहा बुज़ुर्ग/ बच्चों की बाट (डॉ. कुँवर दिनेश सिंह)
कब से खड़ी/वृद्धाश्रम के द्वार/आएगा बेटा (कमला निखुर्पा)
बदली रीत/पुत्र दे रहा सीख/पिता को आज (डॉ. सुरंगमा यादव)
बाँहे पसारे/बूढ़ा शजर लिये/मोह के धागे (पुष्पा मेहरा)
दिल कसके/घुटने चिलकते/पास न कोई (अनिता ललित)
वृद्ध जीवन/सब पर है भार/यही है सार (डॉ. कविता भट्ट)
पीड़ा एक-सी/वृद्धाश्रम सुनाते/वही-कहानी (रमेश कुमार सोनी)
लोगों की भीड़/अकेला बैठा वृद्ध/वीरानी देखे (डॉ. आशा पाण्डेय)
पेड़ तो बोया/फल न चख पाए/बुढ़ापा रोये (रश्मि विभा त्रिपाठी)
चारों ओर है/चेहरों का जंगल/मन अकेला (डॉ. हरदीप कौर)
सुन्न हैं हाथ/खिलाए कोई मुझे/रोटी का ग्रास (सविता अग्रवाल ‘सवि’)

वृद्धजन स्वयं को व्यस्त रख सकते हैं, पहले जैसे नहीं, पर दिल तो बहला ही लेंगे! ऐसे अभिरुचि संपन्न व्यक्तित्व जीवन के आख़िरी साँस तक ऊर्जा संपन्न रहते है। लेकिन, सारे तो ऐसे नहीं होते! कुछ लोग वृद्धावस्था को अभिशाप मानकर कोसते रहते हैं, ऐसे ही कुछ हाइकु देखिए:

ख़ाली चौपाल/न गुड़गुड़ हुक्का/न ही धमाल (रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’)
वृद्ध की आस/चमके कोई तारा/अपना ख़ास (पुष्पा मेहरा)
बहू के ताने/बेटे की फटकार/जीवन भार (डॉ. शिवजी श्रीवास्तव)
भोर का दृश्य/अधखुली खिड़की/झाँकते वृद्ध (ऋता शेखर ‘मधु’)
नहीं पुकारे/ख़ून, अब ख़ून को/छाए अँधेरे (अनिता ललित)
कम बोलिए/बूढ़े कानों से सुना/एक ही वाक्य (डॉ. मीनू खरे)
आँखों में कटें/सदियों लम्बी राते/बेबस वृद्ध (अनिता मंडा)
पेड़ तो बोया/फल न चख पाए/बुढ़ापा रोये (रश्मि विभा त्रिपाठी)
बूढ़ा मकान/लिखे क्षीण हाथों से/जीर्ण कहानी(अंजू निगम)
कथा-कहानी/क्यों दोहराए नानी/रोज़ पुरानी (शशि पाधा)
क्या घड़ी आई/माँ-बाप छोड़ बेटे/घर जमाई (कृष्णा वर्मा)

सही कहें तो वृद्धावस्था जीवन की अच्छी अवस्था है, ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के बाद व्यक्ति चैन से रह सकता है। लेकिन, कार्य अधूरा रह गया हो, तो ऐसे वृद्ध का बहुत हाल बेहाल होता है। क्षण-क्षण में ताने मिलते रहते है। परिवार घृणित भाव से देखता है और शायद सेवा भी अच्छे मनोभाव से नहीं करता। इनका जीवन क़ैदख़ाने से अलग नहीं होता! वैसे तो, अच्छा बर्ताव, मिलजुल के रहने का भाव एवं मीठी ज़ुबान हो तो वृद्धों का जीवन स्वर्ग से कम नहीं, ऐसे लोग हर हाल में ख़ुश रहते है౹ इसी भाव के कुछ हाइकु देखिए:

बूढ़े ठहाके/युवाओं पर भारी/पार्क में योग (डॉ. शिवजी श्रीवास्तव)
पोते के पीछे/भाग रहे दादाजी/खिला है घर (डॉ. आशा पाण्डेय)
आयु के साथ/कब होती है कम!/सूर्य की ऊर्जा (डॉ. उमेश महादोषी)
डाँटे भी कैसे? माँ-पिता जो ठहरे/दवा न खाते! (रमेश कुमार सोनी)
हँसी-ठहाके/पार्क में वृद्धजन/दुःख को भूले (अनिता मंडा)
बे-कही बात/सब समझ जाते/वृद्ध जज़्बात (भीकम सिंह)
चुस्त हो उठी/दोस्तों से गले मिल/बूढ़ी हड्डियाँ (डॉ. पूर्वा शर्मा)
’कैसे हो बाबा? ‘/सुन उमड़े आँसू/दिन निकला (डॉ. छवि निगम)
रात अँधेरी/दे रही है पहरा/बापू की खाँसी (डॉ. हरदीप कौर)
अनुभवों का/है अकूत ख़ज़ाना/वृद्धा अवस्था (मंजु मिश्र)

वृद्धों का तजुर्बा वास्तव में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। अच्छे काम के लिए परिपूर्ण ज्ञान के साथ अनुभव की भी ज़रूरत होती है। ऐसे कामों में असफलता की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती। जिस घर में वृद्धों का सम्मान किया जाता है, वो घर हमेशा तरक़्क़ी के शिखर छू लेता है। वृद्धों की इज़्ज़त बढ़ाने वाले एवं वृद्धों के ज़िद के कुछ हाइकु:

मन सशक्त/कई सपने हरे/देह जर्जर (भावना सक्सेना)
बूढ़ा तन ये/मन बावरा पर/उछले-कूदे! (उमेश महादोषी)
बच्चे-समझें/बुज़ुर्गों के संकेत/स्नेह की भाषा (रमेश कुमार सोनी)
मुग्ध करता/झुर्रियों से झाँकता/माँ का सौंदर्य (डॉ. मीनू खरे)
थके जो पाँव/वृक्ष जैसे बुज़ुर्ग/देते है छाँव (डॉ. उपमा शर्मा)
बूढ़े बुज़ुर्ग/ख़ुशियों का आधार/बाँटते प्यार (मंजु मिश्र)
परम्पराएँ/सौंपते हैं बुज़ुर्ग/जीवन रीत (शशि पाधा)

बुढ़ापा देह की ऐसी अवस्था हैं, जों स्वतंत्र जीव को परतंत्र बना देती हैं। जो लोग इनका हुक्म मानते थे वे अब नज़रअंदाज़ करने लगते है౹ जिन हाथों से अर्थ का मुक्त आदान-प्रदान किया वे पाई-पाई को तरसते हैं౹ क्षण दर क्षण अपमान का जीवन जीते है౹ बुढ़ापा अच्छी तरह से काटना चाहें, तो सुझाव देनेवाले हाइकु भी संग्रह में हैं:

वृद्ध अवस्था/नये हाथों को सौंपें/अब व्यवस्था (डॉ. सुरंगमा यादव)
व्यर्थ संताप/स्वयं ही झेलने हैं/वक़्त आघात (कृष्णा वर्मा)
माँ के ख़त में/आशीषें ही होती है/इंतज़ार भी (प्रियंका गुप्ता)

’अँधेरों का सफ़र’ संग्रह में बहुत ही अच्छे-अच्छे हाइकु हैं। वृद्धों की तरफ़ देखने का नया दृष्टिकोण मिलता है। ख़ुद वृद्धों को भी इस उम्र में अपना जीवन यापन कैसे करना चाहिए, यह सीख इस संग्रह से मिलती है౹ आप सभी यह संग्रह ज़रूर पढ़ियेगा।

समीक्षक
तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे
8830599675
परभणी (महाराष्ट्र) 

1 टिप्पणियाँ

  • 15 May, 2025 05:18 PM

    बहुत सुन्दर समीक्षा की है तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे जी, हार्दिक शुभकामनाए।

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