अधूरी कविता

15-01-2023

अधूरी कविता

डॉ. सुखबीर सिंह शास्त्री  (अंक: 221, जनवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

मैं उन बिन अधूरा, वो मुझ बिन अधूरे
ये रातें अधूरी, ये बातें अधूरी 
फ़लक से ज़मीं तक सारे अधूरे
सितारे अधूरे नज़ारे अधूरे 
बिन चाँदनी जो चंदा अधूरा 
चातक अधूरा बिन बादलों के 
मैं उन बिन अधूरा, वो मुझ बिन अधूरे . . .
 
ये बारिश की बूँदें बिन बादलों के
शीतलता बिन चंदन का जीवन 
सीप बिना ज्यों मोती न उपजे
कमल बिना न ताल की शोभा 
तप भी अधूरा बिन साधकों के
प्रकृति अधूरी पुरुष बिना ज्यों 
मैं उन बिन अधूरा वो मुझ बिन अधूरे . . .
 
जल बिन जो मीन का जीवन
मोक्ष बिना ईश्वर की सत्ता 
बाती बिना न दीपक है जलता
पौन न पावें बिन चंवर डुलाये 
छन्द बिना ज्यों कविता अधूरी
पथिक बिना काहे की राहें 
मैं उन बिन अधूरा वो मुझ बिन अधूरे . . .
 
साथ तुम्हारा जो मिल जाए प्रियतम! 
हो जाये पूरा मेरा ये जीवन
मैं उन बिन अधूरा वो मुझ बिन अधूरे . . .

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

नज़्म
कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में