आया नया विहान
डॉ. विवेक कुमारराम राज सा धरा-धाम हो
कान्हा का रंग-रास,
डाल-डाल पर फूल खिले
रहे सदा मधुमास।
राग-द्वेष-घृणा हटे
बहे प्रेम की गंगा,
रहे नहीं अवसाद धरा में
मन हो सबका चंगा।
निर्भय हो जन-जन का मन
बढ़े देश की शान,
दरवाज़े पर दस्तक देने
आया नया विहान।