आत्मसंघर्ष और संवेदना का समर: ‘लिखा नहीं एक शब्द’
अनुज पाल 'सार्थक'समीक्षित पुस्तक: लिखा नहीं एक शब्द (काव्य संग्रह)
लेखक: अमित कुमार मल्ल
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन, जयपुर
प्रकाशन वर्ष: प्रथम संस्करण 2002, द्वितीय संस्करण 2021
पृष्ठ संख्या: 132
मूल्य: ₹150
अमित कुमार मल्ल का काव्य संग्रह ‘लिखा नहीं एक शब्द’ समकालीन हिंदी कविता में आत्म-संघर्ष, सामाजिक विडंबना, प्रेम, समय और अस्तित्व की गहन संवेदनाओं को उकेरने वाला महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। इस संग्रह का शीर्षक ही कवि के अंतर्मन में छिपे उस मौन की ओर संकेत करता है, जो शब्दों में नहीं, भावों और रिक्तताओं में अभिव्यक्त होता है। यह मौन कवि की आंतरिक पीड़ा, जीवनानुभव और अपने समय से संवाद करने की बेचैनी का रूपक है।
अमित कुमार मल्ल का कवि स्वर किसी क्रांति का उद्घोष नहीं करता, वह एक सहज, संवेदनशील और आत्मानुभविक कविता के माध्यम से पाठक को भीतर तक झकझोर देता है। उनका काव्य न तो अतीत की चकाचौंध में खोया हुआ है और न ही केवल वर्तमान की आलोचना मात्र; यह मनुष्य की शाश्वत पीड़ा, असहायता और संघर्ष की कविता है।
कवि की दृष्टि और काव्य संवेदना
अमित कुमार मल्ल की कविताएँ जीवन के यथार्थ को बेहद ईमानदारी से पकड़ती हैं। उनके यहाँ भावुकता के साथ-साथ बौद्धिक गहराई भी मिलती है। वे अपने अनुभवों को किसी आदर्श के चश्मे से नहीं देखते, बल्कि यथार्थ के सघन अंधकार में उतरकर सत्य की तलाश करते हैं।
उनकी कविताओं में ‘जीवन की अपूर्णता और अस्तित्व की बेचैनी’ प्रमुख भाव हैं। कवि बार-बार यह स्वीकार करता है कि जीवन को शब्दों में समेटा नहीं जा सकता। इसीलिए शीर्षक कविता ‘लिखा नहीं एक शब्द’ में वह मौन की भाषा रचता है। यह मौन उस समाज की भाषा है जहाँ शब्द अपनी शक्ति खो चुके हैं और संवेदनाएँ जड़ हो गई हैं। कवि का यह आत्मस्वर दरअसल पूरे समय का प्रतिनिधि स्वर है। वह उस व्यक्ति की व्यथा है जो बोलना चाहता है, पर शब्द उसके साथ नहीं हैं। यह आधुनिक मनुष्य की मूकता और असमर्थता की कविता है।
विषयगत विविधता
अमित कुमार मल्ल की कविता का संसार केवल आत्मकेंद्रित नहीं है; उसमें समाज, सम्बन्ध, समय और संस्कृति की बहुआयामी उपस्थिति है।
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समाज और व्यक्ति का द्वंद्व-कवि के लिए समाज कोई अमूर्त सत्ता नहीं, वह प्रत्येक व्यक्ति के भीतर घटित होने वाला संघर्ष है। एक ओर मनुष्य की संवेदनाएँ हैं, दूसरी ओर व्यवस्था की निर्ममता। इस द्वंद्व को कवि कभी प्रतीक के माध्यम से, कभी सीधे संबोधन में व्यक्त करता है।
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प्रेम और पीड़ा की संगति—कवि की प्रेम कविताएँ भी किसी रोमानी मोह के नहीं, अपूर्णता में सुंदरता की खोज की कविताएँ हैं। प्रेम यहाँ आत्मा की साधना है। जिसमें तृष्णा नहीं, विरह का बोध है।
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समय और स्मृति-कवि का समय एक रेखीय प्रवाह नहीं, बिखरे हुए स्मृतियों का विस्तार है। वह वर्तमान में जीते हुए अतीत को पुनः रचता है, ताकि स्मृति और अनुभव का संगम हो सके।
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आध्यात्मिकता और आत्मचिंतन-कवि का आत्मसंघर्ष केवल सामाजिक नहीं, दार्शनिक भी है। उसकी कविता में अक्सर एक सूफ़ियाना विरक्ति दिखाई देती है, जैसे वह संसार में रहते हुए भी संसार से परे है। यह भाव उनकी कविता को आध्यात्मिक गहराई देता है।
शिल्प और संरचना
अमित कुमार मल्ल की कविताएँ अत्यंत संक्षिप्त, सघन और अर्थगर्भित हैं। उनका शिल्प सीधा-सादा होने के बावजूद प्रतीकात्मकता से भरपूर है। कवि लंबी व्याख्याओं से बचता है; वह ‘कम शब्दों में गहरी बात’ कहने की कला में पारंगत है।
उनके यहाँ मुक्त छंद का प्रयोग अत्यंत प्रभावशाली है। लय वहाँ बाहरी नहीं, अंतःलय के रूप में प्रकट होती है। उनकी कविताओं में संक्षिप्त वाक्य, ठहराव, विराम और मौन का गहरा प्रयोग दिखाई देता है। यह शिल्प न केवल भावों की तीव्रता को बढ़ाता है, कविता को चिंतन का रूप भी देता है। भाषा के स्तर पर कवि का मुहावरा समकालीन हिंदी कविता के सहज भाव-बोध से जुड़ा है। वह संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग नहीं करता, रोज़मर्रा के शब्दों को काव्यात्मक ऊर्जा से भर देता है।
प्रतीक और बिंब योजना
कवि के प्रतीक अत्यंत आत्मीय हैं मिट्टी, शब्द, मौन, नदी, आकाश, अकेलापन, समय और घर ये सब बार-बार उनकी कविताओं में लौटते हैं। ‘मिट्टी’ उनके यहाँ केवल धरती नहीं, अस्तित्व का मूल है। ‘शब्द’ कविता का माध्यम नहीं, अस्मिता का दर्पण हैं। ‘मौन’ उनके काव्य का सबसे शक्तिशाली प्रतीक है। वही उनके भीतर के संघर्ष और आत्मचिंतन का प्रतीक बनता है। उनके बिंब अत्यंत सजीव और संवेदनात्मक हैं। उदाहरणतः—‘शब्द थक गए हैं। अर्थ सो गए हैं। और मैं अब भी चुप हूँ।’
कविता में आत्मसंघर्ष और अस्तित्व की खोज
अमित कुमार मल्ल की कविता में ‘मैं’ बार-बार आता है। लेकिन यह ‘मैं’ स्वार्थी नहीं, विचारशील और व्यथित मनुष्य का प्रतीक है। यह ‘मैं’ प्रश्न करता है, आत्मावलोकन करता है और भीतर की परतों को खोलता है। उनकी कविता आत्मसंघर्ष की कविता है। जहाँ कवि अपने ही विचारों, अपनी ही असफलताओं, अपने ही मौन से लड़ता हुआ दिखाई देता है। उनकी रचनाओं में यह भाव बार-बार उभरता है कि:
‘सच को ज़िन्दा रखना ज़रूरी है
सचवाले भी ज़िन्दा रहें, यह भी ज़रूरी है।’
इस प्रकार कवि अपने ही अस्तित्व की परीक्षा लेता है। यह परीक्षा ही उसके काव्य का केंद्रीय भाव है।
समकालीनता और सामाजिक संदर्भ
अमित कुमार मल्ल का काव्य आज के यथार्थ से मुँह नहीं मोड़ता। वह व्यवस्था, राजनीति, दिखावे और असंवेदनशीलता के विरुद्ध भी मुखर है। लेकिन बिना शोर-शराबे के। उनकी कविताओं में ‘विरोध का सौंदर्यशास्त्र’ है। वे आक्रोश को भी शालीनता से व्यक्त करते हैं। यही गुण उन्हें अन्य समकालीन कवियों से अलग करता है। उनका समाजबोध किसी विचारधारा से बँधा नहीं, मानवीय करुणा से प्रेरित है। वे अपने समय की विसंगतियों को न केवल देखते हैं, उनसे संवाद करते हैं।
भावनात्मक गहराई और मानवीय करुणा
अमित कुमार मल्ल की कविता का मूल स्वर करुणा है। लेकिन यह करुणा दीनता नहीं, संवेदना का बल है। वे मनुष्य की पीड़ा को केवल सहानुभूति से नहीं, साझेदारी की भावना से महसूस करते हैं। उनकी कविताओं में एक स्थायी ध्वनि है। ‘मनुष्य अभी पूरी तरह मरा नहीं है।’ यह विश्वास ही उनकी कविता को निराशा से बचाता है और आशा का बोध कराता है।
काव्य संवेदना की दार्शनिक गहराई
अमित कुमार मल्ल की कविताएँ केवल अनुभूति की नहीं, विवेक की कविताएँ भी हैं। उनके शब्दों में सूक्ष्म दार्शनिकता छिपी हुई है। वे कहते प्रतीत होते हैं कि:
‘माटी की देह
माटी में मिल जाती है
आत्मा कहाँ है?
बुद्धि के थमने से शरीर ख़त्म हो जाता है।’
यह वाक्य उनके समूचे काव्य-दर्शन का सार है। जहाँ शब्द और मौन, जीवन और मृत्यु, प्रेम और विरह, समय और स्मृति सब एक दूसरे के प्रतिबिंब बन जाते हैं।
भाषा की सरलता और गहराई
कवि की भाषा सहज, आत्मीय और भावनात्मक है। वह कठिन शब्दावली से नहीं, सामान्य शब्दों के असामान्य प्रयोग से अर्थ की गहराई रचते हैं। उनकी भाषा में गद्यात्मक प्रवाह है, परन्तु अर्थ-गुंजाइश इतनी गहरी है कि हर पंक्ति पाठक को रुककर सोचने पर विवश करती है।
कविता और जीवन का सम्बन्ध
अमित कुमार मल्ल के लिए कविता जीवन से अलग नहीं है। उनके अनुसार, ‘कविता जीवन की प्रतिध्वनि है।’ वे शब्दों में नहीं, अनुभवों में जीते हैं। इसीलिए उनकी हर कविता जीवन के किसी अंश की गवाही देती है। उनकी कविताएँ पाठक को सोचने, ठहरने और अपने भीतर झाँकने के लिए विवश करती हैं। यही किसी सच्चे कवि की पहचान है।
समग्र मूल्यांकन
अमित कुमार मल्ल का ‘लिखा नहीं एक शब्द’ आधुनिक हिंदी कविता में एक उल्लेखनीय योगदान है। यह संग्रह हमें यह सिखाता है कि कविता केवल अभिव्यक्ति नहीं, आत्म खोज है। मौन भी एक भाषा है, और शब्द भी कभी-कभी मौन हो जाते हैं। उनकी कविताएँ हमें भीतर से बदलती हैं, क्योंकि वे हमें हमारे ही चेहरे से मिलवाती हैं। यह संग्रह उन सभी पाठकों के लिए है जो कविता को केवल पढ़ना नहीं, महसूस करना चाहते हैं।
अमित कुमार मल्ल की काव्य दृष्टि मानवता की पुनर्स्थापना की दृष्टि है। उनकी कविताएँ हमें उस मौन की याद दिलाती हैं जो भीतर अब भी जीवित है। ‘लिखा नहीं एक शब्द’ के माध्यम से कवि यह सिद्ध करता है कि सच्ची कविता वही है जो अंतर्मन की गहराई से निकले और मानवीय पीड़ा को शब्द दे सके।
अतः कहा जा सकता है कि अमित कुमार मल्ल की यह कृति अपने शीर्षक की तरह ही एक मौन घोषणापत्र है। शब्दों से परे की कविता, मौन की भाषा में रची एक अनकही गाथा।