आशा की चौखट पर
आशुतोष मिश्राहौसला आदमी का थक चुका है,
आस जीने की अलसाई हुई है,
धीरज धर्म मित्र अरु नारी,
साथ छोड़ने की ख़ामोश तैयारी।
खड़े रहो इंसा, आशा की चौखट पर।
छोड़ पीछे संदेहों के पहाड़,
दुःख और मृत्यु को पछाड़,
टूटते रिश्तों में, उम्मीदों का गुंजन,
हताश आँखों में, कुछ होने का स्पंदन।
खड़े रहो इंसा, आशा की चौखट पर।
पिचकते गाल, उभरता यौवन,
थकी उदासी, तलाशती जीवन,
थक चुके, ज़िंदगी जी ली है,
आशा की किरण, भले झीनी है
खड़े रहो इंसा, आशा की चौखट पर।
तोड़ दो ज़ंजीरों को, जो रोकती हैं,
उम्मीद, फल बंजर में रोपती है,
अलसाई हुई आस से अंकुर फूटेगा,
अँधेरा पस्त, हौसला जीतेगा
खड़े रहो इंसा, आशा के चौखट पर।